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________________ श्री 57 गु ए fg ४६६ नाहीं होय, सो शुद्ध देव नाहीं। ये अतिशय जामें होंय, सो शुद्ध तरन तारन जानना । सो प्रथम अतिशय तीन हैं । वचन अतिशय, आत्म अतिशय और भाग अतिशय । इनका अर्थ- जाकी वाणी मेघ समान अनक्षरी. अनुक्रम रहित खिरै सो अपनी-अपनी भाषामें सब बारह सभा के जीव समझें। सर्वका संदेह जाय, संशय रहे नाहीं । जार्कों सुनि, भव्यका कल्याण होय । पाप नाश होय पुण्य फल उपजै सो वचन अतिशय है । २ । कर्म के प्रगट्या पोता अनन्तदर्शन अनन्तसुख और अनन्तवीर्य सो ये आत्म अतिशय है । २ । गर्म के पहिले, रत्नों की वर्षाका होना, नगर सब रत्नमयी होना, इन्द्रादिक देव सेवा करें। केवलज्ञान स्वभाव प्रगट भये, समोशरण विमूर्तिका प्रगट होना । इत्यादिक महिमा सो भाग्य अतिशय है | ३ | ऐसे तीन अतिशय जिनमें होंय, सो भगवान् हैं। इति तीन अतिशय आगे भगवान् की माताको गर्भ के पहिले, सोलह स्वप्न आये हैं । तिनके नाम व लक्षण कहिये हैं। प्रथम नाम ऐरावत हस्ती, श्वेत वृषभ, सिंह, पुष्पमाला, लक्ष्मी कलश स्नान करती देखी, पूर्ण चन्द्रमा, सूर्य, कनक कलश, मच्छ युगल, सरोवर, सागर, सिंहासन, स्वर्ग विमान, धरणेन्द्र विमान, रत्न राशि, और निर्धूम अग्नि । ये सोलह स्वप्न भगवानकी माताने देखे हैं। अब इनका सामान्य फल कहिये है। प्रथम ऐरावत हस्तो देखा । ताका फल ऐसा जो पुत्र महान् पुण्यका धारी, सर्व तैं ऊँचा होयगा । २ । और श्वेत वृषभ देखा ताका फल रीसा जो पुत्र धर्मका धारो, जगत्-पूज्य हीथगा । २। और सिंह देखा । ताका फल ऐसा जो पुत्र अनंत बलका धारी होयगा । ३ । पुष्पमाला देखी। ताका फल ऐसा जो पृथ्वीमें धर्मको प्रगट करनहारा होयगा । ४ । लक्ष्मीको कलश स्नान करती देखी। ताका फल ऐसा जो पुत्रका सुमेरु पर्वत पै स्नान होगा । ५ । पूर्ण चन्द्रमा देखा। ताका फल ऐसा जो तीन लोकके जीवनकों जानन्दकारी होयगा । ६ । सूर्य देखा ताका फल ऐसा जो महा प्रतापी होयगा ७ कनक कलश देखा । ताका फल ऐसा । जो अनेक निधिका भोगता होयगा । ८। ता पीछे मच्छ-युगल देखा। ताका फल ऐसा जो अनेक सुखका भोक्ता होयगा । ६ । सरोवर देखा । ताका फल ऐसा १००८ लक्षणका धारी होयगा । १० । पोछे कल्लोल करते समुद्र पौ देखा । ताका फल ऐसा जो केवलज्ञानका धारी होयगा । २२1 पीछे सिंहासन देखा। ताका फल ऐसा जो बड़े राज्यका भोगता होयगा । १२ । पीछे स्वर्ग विमान देखा । ताका फल ऐसा जो स्वर्ग तैं चय के अवतार लेयगा ४६६ द रं
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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