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________________ ४६२ प्रकार की सैन्धा जानना। ऐसी विमति सहित श्री आदिनाथ के पुत्र भरत चक्रवर्ती सोलहवें कुलकर पहले चक्री सो महाविवेक के सागर होते भए। सो इनके काल विष भोग भमि के बिछुरे प्रजा के लोग भोले जोव कर्म भूमि की रचना में नहीं समझे। अरु कल्पवृक्षन का अभाव भया जीवन के क्षुधा बधी। तब भोले जीव उदर पूरण की विधि बिना दुःखी होने लगे। विशेष ज्ञान चतुराई कर्म भमि सम्बन्धी आरम्भ नहीं जानें। तिनके दुःख निवारवे कू मरत चक्री हैं सो प्रजा को कर्म भूमि की रचना का ज्ञान होवे कू प्रजा कू सुखी होने के निमित्त षट् कर्म का उपदेश देते भए। तिनके नाम व स्वरूप कहिए है। इज्या, वार्ता, दान, स्वाध्याय, तप और संयम-ए षट कर्म हैं । अब इनकी प्रवर्ति कहिरा है। तहाँ भगवान् सर्वज्ञ जगन्नाथ की तरनतारन जानि पापहरन मोक्षकरन जानि के विवेकी भक्ति के वशीभत होय आपकौं पाप सहित जानि कर्म सहित जन्म-मरण करि दुःखिया जानि आप दीन होय विनय सहित, अपने पाप हरवे कं, भगवान् का पूजन करना। तिनके सन्मुख खड़ा होय, उत्कृष्ट अष्ट द्रव्य मिलाय अपनी काय पवित्र करि, मन्त्र सहित प्रभु के चरण आगे धरै। जैसे—लौकिक में निज उत्कृष्ट वस्तु लेय, राजान जमत जाय, वरण माग धौं: राजा कीरति करें। तैसे ही भगवान् को पूजा-स्तुति किये, पाप क्षय होय । सो तिस पूजा के न्यारि मेद हैं। तिनका नाम-एक तौ प्रतिदिन अष्ट द्रव्यते भगवान् की पूजा करना, सो नित्यमह है। ३। चतुरमुख पूजा-ये महापूजा-विधान सो मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वरादि बड़े राजान ते बनें है। २ । कल्पवृक्ष पूजा-सो तामैं उत्तम नेवज, नेत्र कू सुखकारी, जाकौ देख देव भी अनुमोदना करें, ऐसे उत्तम द्रव्य ते पूजा करनी और ता समय जेते दिन लौ पूजा-विधान आरम्भ रहै। तेते दिन सर्व कौ किमिच्छक कहिए मनवांच्छित दान, याचकन को इच्छा-प्रमाण कल्पवृक्ष की नई दान देना, सो कल्पवृक्ष पूजा है। सो ये पूजा चक्रवर्ती से बनें है। ३ । अष्टाह्निका-पूजा याका नाम ही इन्द्र-पूजा है। सो या पूजा इन्द्र तें बने है।४। रोसे च्यारि प्रकार प्रभु की पूजा का, भरतेश्वर अपने निकटवर्ती राजान की तथा प्रजाङ उपदेश देते भये । याका नाम इज्या क्रिया है। इति इज्या। आगे वार्ता क्रिया काहिरा है । वार्ता कहिए, दगाबाजी सहित आजीविका का विचार त्याग करि, न्याय सहित आजीविका पूरी करनी, सो वार्ता है। ताके अनेक भेद हैं। मुख्य-असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प और पशु-पालन-ए षट् भेद हैं। तहां असि कहिए खड़ग, सो
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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