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________________ ब सान्द्रय हैं। तेइन्द्रिय, चींटी, चार स्थावर हैं। और त्रस जो बात कायिक, हरी-पोली बेलो. पाहन जहाज समानि है सो ये आप भी डूब है और पाहन-नावका आश्रय लेनेहारा भी डुबै है। तातें हिंसा तजि, दया भाव राखना भला है। बहुरि ये दया भावना कैसी है । षट कायक जीवनको रक्षा करने को भाई समान है। कैसे हैं षट कायिक, सो कहिये हैं। पृथ्वी कायिक तौ, मिट्टी-पाषाणदिकके जीव हैं। अएकायिक, जलके जीव हैं। तेजःकायिक, अनिके जीव हैं। वायु कायिक, पवनके जीव हैं। बनस्पति कायिक, हरी-पोली बेलो, धास वृक्ष । इन आदि अनेक तनके धारी पञ्च स्थावर हैं। और त्रस जो बैइन्द्रिय-इल्ली जोंक, नारुवा, कैचूवा आदि बेइन्द्रिय हैं । तेइन्द्रिय, चींटी, चींटा, खटमल, कंथवा, इन जादि अनेक तनक धारी तेन्द्रिय हैं। और चौइन्द्रिय में मक्खी , मच्छर, प्रमर, टिड्डी, इन आदि चउ इन्द्रिय हैं। पंचेन्द्रियमें देव, मनुष्य तिर्यच, नारक ये सर्वत्रस हैं। सो ऐसे कहे जो स-स्थावर षट कायिक जीव, सो इनकी रक्षा करने की दया भाव, भाई समानि हैं। और इन षट काधिक जीवनको रक्षा करने को दया, माता समानि है। जैसे माता पुत्रको रक्षा कर है। ऐसेही दया, सब | जीवोंकी रक्षा कर है। तातें है भब्धात्मा, ये दया सर्व गुण भण्डार जानि, याका साधन करि। याके उत्कृष्ट सैवनकौं जानें, तो कं मोक्ष होयगी। यहां प्रश्न-जो दया के उत्कृष्ट जाने ही मोक्ष कैसे होय ? दया पालैगा तो मोक्ष होयगी। ताका समाधान—जो है भव्य, जो तेने कही सो सत्य है। परन्तु जाको उत्कृष्ट जानें तो ताका सेवन भी करें। तातें प्रथम पक्का श्रद्धान करावना कि दया से मोक्ष होय है। जैसे लौकिक में भी ऐसी प्रवृत्ति देखिये है। जो जाकौं बड़ा मानें, तो ताके वचन की भी प्रतीति करे है। जो फलाना बड़ा जादमी है, उदार है, ताको सेवा किये अनेक जीव धनवान होय सुखो भये। सो मोकों भी याकी सेवा मिले, तो मोकों भी धन मिले। मैं भी सूझी होऊ1 ऐसे पुरुष की सेवा बिना, चाकरी बिना, दरिद्रता जातो नाहीं। रोसा दृढ़ श्रद्धान होय है। तब पोछ यह धनका इच्छुक, सुख के निमित्त, उस ऊंच पुरुष की सेवा करने को वाके पास जाय, मान तजि, नमस्कार करि, बारम्बार शीश नमावै, विनय करे है। ताकी शाज्ञा प्रमारा करै। निश-दिन सेवाविर्षे सावधान रहै। अनेक मुख-प्यासादिक कष्ट सहे करि भी रहे। कष्ट सह. परन्तु उसकी आज्ञा मंग नहीं करै। जब वह बड़ा पुरुष याको सेवा बहुत प्रोति सहित जाने, तब वह उत्कृष्ट पुरुष याकौं धन देय सुखो करे है। और कदाचित् सेवा | करनेहारे कौं बड़े पुरुष का उत्कृष्टपना भास ही नहीं, बड़ा ही नहीं जाने, तौ सेवा कैसे करे? अरु सेवा नहीं
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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