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________________ - - सम्यग्दृष्टि इनके शरीर रोगः क्षीण व अशुचि देख, बहुत जीवन नै एक ही बार ग्लानि करी होय इत्यादिक अशुभ भावन से बहुत जीवन के एक ही बार रोग होय है।हए। बहुरि शिष्य पूछी । हे गुरुजी ! इस जोवर्क पर-स्त्री तथा पर-पुरुष देख काम विकार होय, मोह उपजै । सो किस कर्म का फल है ? तब गुरु कहीजो जीव पर-भव की स्त्री होय तथा पर-भव में जिनको परस्पर व्यभिचार का बन्ध भया होय तथा पर-भव को हाँसो, सिलवती, नाच, गीत की सुहवति-संग का जीव होय इत्यादिक पर-भव के विकार सम्बन्ध ते भवान्तर में ताकौ देख काम-विकार होय है। बहुरि मिस पूटी। है भुलेपर-जीका देवा. बिना कारस द्वेष-भाव होय । सो कौन कारण? तब गुरु कही-जाको देख द्वेष-भाव होय, सो पर-भव का वैरी होय । आपने वाकौं पर-भव में दुःखी किया होय तथा वान आपकौं काहू युद्ध कराय, हर्ष मान्या होय तथा जापने वाकौं भिड़ाय, सुख मान्था होय इत्यादिक पूर्व द्वेष जातें होय ताकौ देखे भवान्तर में देष-भाव होय ।३००! बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरुजी ! पर-जीव देव, मनुष्य, पशु ताकौं देख हर्ष होय। सो कौन सम्बन्ध है ? तब गुरु कही--कोई पर-भव का पुत्र का जीव होय तथा भाई का जीव तथा माता का जीव तथा बहिन का जीव तथा पिता का जीव इत्यादिक पर-भव का कोऊ कुटुम्बी जीव होय तथा पर-भव का कोई मित्र होय तथा अपना कोई पर-भव में उपकार करनहारा होय तथा आपने वाके ऊपर कोई उपकार पर-भव में किया होय इत्यादिक सम्बन्ध वातै कोऊ पूर्व भव का होय ताकी सूरत देख मोह उपजै है। २०३ । बहुरि शिष्य पूछी। है गुरुदेव ! अपने दुःख मैं बिना प्रयोजन कोई जाय सहाय करे। सो कहा सम्बन्ध ? सो कहिये। तब गुरु कही-पर-भव में आपने वाके ऊपर कोई उपकार किया होय। जो भोक अत्र-भोजन दिया होय सो आय आपकों बड़े सङ्कट में भोजन का सहाय करें। जान तृषावन्त कौ जल प्याय साता करी होय। सो आपकौं दीर्घ पर्वत, वन, उद्यान में तथा युद्ध में जहां जल नहीं होय तृषा-सङ्कट में प्राण जाय ऐसे दुःखन मैं जल प्याय सुखी करै तथा जानै नग्न रहते कौ वस्त्र देय साता करी होय। सो भवान्तर में ल्याय अनेक वस्त्र नजर कर तथा आपने काहू को अभय-दान देय दुःस्त्र ते, मरण ते बचाया होय तो वह हस्ती, सादि दुष्ट जीवन करि । प्राण जावते आय सहाय करै मरत कौ बचाव है तथा महासंग्राम विष बाय सहाय करै इत्यादिक जाके ऊपर
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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