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________________ ४२५ मिनलौ भक्ति-भाव रहित दान दिया होगटावित-तितन की दया रहित दान दिया होय तथा मायातं उदर । भरनेहारे चोर, फांसी, गिरी, ठग तिनकी कला-चतुराई देख, तिनके ज्ञान को प्रशंसा करो होय तथा पराया | धन धरचा हो जानता, मुकरि गया होय । औरन के मले किसव को दोष लगाया होय इत्यादिक पाप भावन । तें दगाबाजी सहित आजीविका करनेहारा होय । १२ । बहुरि शिष्य पूछी। हे दयाल गुरुनाथजी ! सरल भाव सहित सत्यवादी होय आजीविका पूर्ण करें, सो किस पुण्य तें करें? सो कहो । तब गुरु कही—जिनने पर. भव में सरल भाव तें धर्म-राग करि धर्मात्मा जोबन कं अन्न-पान विनय सहित देय, साता करी होय तथा दगाबाजी रहित, दया सहित, दोन जीवन कू खान-पान देय रक्षा करो होय । जारन को निर्दोष आजीविका उपजावते देख, तिनको प्रशंसा करी होय तथा पर-भव में सत्य वचन व सरल भाव सहित आजीविका नहीं मिलै मी, अनेक भूख सही, सक्कट सहे । परन्तु कपटाई सहित उदर पोषण नहीं किया होय इत्यादिक शुभ भावन तै, न्याय सहित सरलता से आजीविका पैदा होय है । ६३ । बहुरि शिष्य पूछी। यह जीव नर व पशु होय, घर-घर बिकता फिर। सो कौन पाप-कर्म का फल है? तब गुरु कही-पर-भव में जा जीव नैं बल करि, छल करि, पराये पुत्र-पुत्री बैंचे होय तथा पराये पशु छल-जल करि हर के, घर-घर बैंच होय तथा पराये पुत्रादि मनुष्य तथा हस्ती, घोटक, महिष, वृषभ आदि जीव कोऊ के प्रबल शत्रु ने अन्याय भाव ते लटि, पकड़ ल्याय घर-घर बैंचे होंय तिनको देख सुखी भया होय तथा बीच में दलाली खाय, पराये मनुष्य-पशु बिकाये होंय इत्यादिक भावन से आप घर-घर विर्षे बिकै है । १४1 बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरी। एक बार ही बहत जीव-समुदाय मरणको प्राप्त होय । सो कौन कर्म के उदय तें होय? सो कहिये । तब गुरु कहीपर-भव में जिन बहुत जीवन नैं राक ही बार पाय उपाया होय । जैसे—कोई, मनुष्य कू तथा पशु कं मारे है 1 तहां कौतुक के हेतु अनेक जीव देख, सुखी होय, पाय भार उपाया होय तथा कोई नर-नारीकं अग्नि में जलते देख, अनेक जीव सुखी भये होंय, अनुमोदना करी होम तथा युद्ध विर्षे अनेक जीवन का भरस सनि तथा देख, अनेक जीव राजी होय, हर्ष पाया होय तथा अनेक जीवनिने मिलि वीतराग देव-गस-धर्म की निन्दा-हाँ सि करी होय इत्यादिक पाप भावन ते समुदाय सहित अनेक जीव मरण पावें हैं ।इश बहरि शिष्य 9a ४२५
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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