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________________ इत्यादिक अशुभ भावन ने नोच ली होग।६। बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरुदेव ! ऊँच कुलो कौन पुण्य तें होय ? बरकतो ...सा, कामको प्रशंसा करी होय तथा अपने भौगुण गुरुन वै प्रगट प्रकाशै होय |४२३ तथा पराय गुण देख आच्छादन कमरे होय तथा चार प्रकार के संघ की सेवा करी होय तथा दुराचार ते डर या होय । अनेकौन-जीवन्त कं अनेक भोजा-पान-वस्त्र देय, सुखी करि मिष्ट वचन तें साता उपजाई होय तथा अपने भावक तें कोऊ का मी अनादर नहीं करचा होय तथा आप दोन समानि आपकौं जानि, अभिमान रहित । रह्या होय इत्यादिक शुभ मावन से ऊँच कुलो होय । ८७ । बहुरि शिष्य पूछो। है गुरु। यह जीव नीच कुल में उपजै! तिनकौं दीर्घ पन, हुकुम, लोक में मान पुरुषार्थ होय सो कौन पुरय तें होय ? तब गुरु कही—जिन जिन जीवन नै पर-भव में अनेक अज्ञान तप करे कबहूँ अन्न का त्याग करि, साग-भाजी भोजन करो होय तथा वनफल-पत्ता का भोजन करया होय तथा सर्व त्याग, दुध लिया होय। मही पिया होय । घासि घोट के पिया होय। अग्नि में तन तपाया होय। ऊर्ध्व पोव-अधो शीश. मुल्या होय। भूमि गड़-या। पर्वत पतन किया। जल पतन इत्यादिक बाल तपस्वी होय, अनेक कष्ट, धर्म के निमित्त सहे होंय तथा अज्ञान तपस्वीन कौं, मले धर्मात्मा जानि विनय सहित सरल भावन तै तिनको पूजा करी होय। धर्म के निमित्त यात्रकन की दान दिया होय तथा लौकिक कार्यन में धर्म जानि धर्म फल कौं धन खर्चा होय तथा अपनी अज्ञानता त अन्य भोले जीवन के धर्मो जान पूजे होय तथा आप झान रहित होय, मन्द कषायो रट्या होय इत्यादिक भावना सहित नीच कुल में उपजि. धनवान-हकुमवान होय सो तिर्यंच गति का बन्ध किये पीछे ऐसे गाव होय, तौ शुभ भावना के फल से कोई राजा का हस्ती-घोटकादि पशु होय । ताक पीछे अनेक जीव पलें। भले वस्त्र-आभूषण, भले भोजन का भोगनहारा आप सुखी होय तथा पहिले मनुष्यायु का बन्ध किया होय, तौ नीच कुल में उपजै। सो हुकुम का धारी होय तथा पहिले देवायु का बन्ध किया होय तौ भवनत्रिक में अल्प ऋद्धि का धारी, हीन देव होय इत्यादिक भावन ते ऐसे होय । ८८। बहरि शिष्य पूछो। ये जीव ऊँच कुली होय दीन दशा धारे, धन रहित होय। सो किस पाप का ४२३ । फल है ? सो कहिये । तब गुरु कही--जिसनें पर-भव मैं शुभ भावन से ऊँच-गोत्र का बन्ध करि पोछे विपरीत कषाय रूप भाव भये, सी मान के वश होय, मोह के जोर ते मदोन्मत्त होय पर-जीवन का मान खण्ड कर, हर्ष ONES
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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