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________________ श्री सु fr ४१९ कहि पीड़े होंय तथा दीन-दरिद्री जीवन को देख तिनको झूठा चोरी का दोष लगाया होय तथा दीन-दरिद्री जीव देख तिनकी हाँसि करी होय इत्यादिक परमव में पाप-भाव करे होंय जिनतें ये जीव र दरिद्री होय है । ७२ ॥ बहुरि शिष्य पूछो। हे गुरुजी ! यह जीव कुकाव्य-कला का धारी चतुर कौन कर्म तैं होय ? तब गुरु कहीजिन जीवन के कुकथा भली लागी हो तथा करनी- किस्से पड़े जानि-सुनिल पाया होय तथा लौकिक चतुराई के शास्त्र-धर्म जानि दान दिये होय तथा उदर पूरण के कारण ऐसे ज्योतिष वैधक सुभाषित-सभा चातुरी के शास्त्र तथा शिल्प कलादिक चतुराई के शास्त्र धर्म जानि दान दिये होंथ तथा धर्म के अर्थ औरन कौं लौकिक विद्या कला-चतुराई सिखाईं होय तथा अपवित्र शरीर तैं धर्म-शास्त्र का अभ्यास कर्या होय तथा अनेक आरम्भ अन्याय पाप करि धन उपाय वह धन शास्त्रन को लिखाई निमित्त दिया होय तथा आप उत्तम धर्म सेवता कुकवीन के ज्ञान की प्रशंसा करी होय व आपकों सोखवे को वांच्छा रही होय इत्यादिक भावन तें जीव भवान्तर में कुकवि होय है। ७२ । बहुरि शिष्य पूछो। हे नाथ! सुकवि धर्म-शास्त्रन के छन्द-काव्य-कला का जोड़नेहारा सुबुद्धि का धारी किस पुण्य तें होय ? तब गुरु कही- जिनने पर भव में गणधरादि कविनाथ छन्दकर्ता आचार्य तिनका काव्य-कला शास्त्र में देख-सुनि तिनका रहस्य जानि कविनाथ जो गणधरादि तिनको महिमा करो होय तथा सुकाव्य धर्म शास्त्र के कर्ता तिनको देख अन्तरङ्ग में प्रसन्न होय, तिन तैं वात्सल्य भाव जनाये होंय तथा धर्म की जोड़-कला करते सुकविन की सेवा-सहाय करि, साता उपजाई होय तथा सुकविन के किये छन्द, गाथा, श्लोक तिनको वांचि, धर्म का रहस्य जानि, हर्षायमान होय, कविन की प्रशंसा करो होय तथा धर्म शास्त्र को जोड़-कला करते कवीश्वर की कछु सहाय करी होय इत्यादिक शुभ भावना तैं विशेष ज्ञान का धारी सुकाव होय। ७३ । बहुरि शिष्य पूछो। हे गुरो ! यह जीव दीर्घ आयु का धारी, जन्मान्तर पर्यन्त सुखी कौन पुण्य ते होय? गुरु कही -- जिनने पर भव में पर- जीवन कूं मरते बचाय, फिर तिनको अनेक भोजन कराय, देव, मिष्ट वचन भाषण करि साता उपजाई होय तथा अनेक जीवनकों :-जीवन कूं सुखी करने की सदैव अभिलाषा रही होय । औरनकों अल्पायु मरते देख, संसार हैं उदास होय, दया भाव सहित जाका चित्त भया होय। दोन जीवन को रक्षा विशेष चाही होय बन्दी तैं छुड़ाय, सुखी करे ह ४१९ स at轲动
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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