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________________ यह जीव नरक किस पापत पावै? तब गुरु काही-जिन पर-भव में अनेक पर-जीव सताये होय । दीरध क्रोध धारचा होय । जाका हृदय महादगाबाजी से भरचा होय । जाने मद्य-मांसादि अमक्ष्य भक्षण करे हाथ । धर्म भाव रहित, पाप सहित वरत्या होय तथा धर्म ते द्वेष-भाव करि पाप-कार्यन की रक्षा करी होय तथा पर-जीवन के मारने-बांधने की विशेष इच्छा रही होय इत्यादिक भावन ते नरक में उपज है । ६०। बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरुदेवजी ! यह जीव पशु में किस पाप ते उपजै? तब गुरु कहो—जिन पर-मव में पर स्तुति की प्रारति करी होय । कर्म के वश अनेक खान-पान की आरति धन जोड़ने की आरति शरीर पुष्ट करने की आरति करो होय इत्यादिक भाव जानैं अशुभ राक्ष होय तथा प्रक्रिया सहित खान-पान करे होय तथा खाद्य-अखाद्य वस्तु का विचार नहीं करचा होय । प्रमाद सहित धर्मभावना रहित वरत्या होय इत्यादिक अज्ञानता सहित अनेक आत-ध्यान से तिर्यच होय । ६२ । बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरु जी! यह जीव कुमोग भूमि का मनुष्य जाका मुख तौ अनेक पशुन के आकार अरु नीचले अङ्गोपाङ्ग सर्व मनुष्यन कैसे महासुन्दर सुघड़ होय, सो ऐसा शरीर कौन कर्म के उदय ते पावे? तब गुरु कही-जा जीव ने पूर्व भव में मिथ्याष्टिमुनि को दान दिया होय तथा कुमुनिन की भक्ति करि दान दिया होय तथा शुभ मुनिन कौं कपटाई सहित दान दिया होय तथा मुनीश्वरों को दान देते चित्त लोभ रूप रह्या होय तथा मानो चित्त रह्या होय तथा मान को इच्छा रही होय तथा मुनीश्वर कौं दोष-सहित भोजन दिया होय तथा नवधा भक्ति में अभिमान रख्या होय तथा दाता के सात गुण हैं, तिनमें कोई होन होय इत्यादिक भावनत कुभोग-भमिया मनुष्य होय है ।६२। बहुरि शिष्य पूछो। हे गुरो! सुभोग भूमि विर्षे तीन पल्य की आयु सहित देव समान दश प्रकार कल्प वृत्तन के दिये सुख तिनका भोगता, किस पुण्य तें होय ? सो कहाँ । तब गुरु कही–जार्ने * भाक्तिक तौष्टिकं प्रार्द्ध सविज्ञानमलोलुपं । सात्विक क्षमक सन्त: दातारं सप्तधाविदुः ॥ १ भक्ति, २ तुष्टि, ३ श्रद्धा, ४ ज्ञान, ५ अकोलुप ( अलोल्म), ६ सत्व, ७ क्षमा--ये सात दातार के गुण हैं। पर-भव विर्षे नवधा-भक्ति सहित (२ प्रतिग्रह, २ उच्च स्थान, ३ अंघ्रि प्रक्षालन, ४ अर्चा, ५ आनति, ६ मनः शुद्धि, ७ वचन शुद्धि, ८ काय शुद्धि, ६अत्र शुद्धि-ये नवधा-भक्ति हैं।) दान दिया होय तथा और
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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