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________________ बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो । पिता-पुत्र में स्नेह कौन पुण्य ते होय ? तब गुरु कही-जिनने पर-भव में और के पिता-पुत्र में स्नेह देख सुख पाथा होय । पराये पिता-पुत्र में द्वेष-भाव देख अपनी बुद्धि के बल करि दोऊनकौं ||१४ समझाय, स्नेह कराय दिया होय। औरन के पिता-पुत्र में स्नेह चाह्या होय इत्यादिक शुभ भावन तैं पिता-पुत्र में स्नेह होय । ५२ । बहुरि शिष्य पूछी। है गुरो। गर्भ में पुण्याधिकारी का अवतार भया कैसे जानिये? तब गुरु कही-जाके गर्भ में आवते माता-पिता प्रसन्न चित्त रहैं। कुटुम्ब में मङ्गल होय। माता का चित भगवान् की पूजा रूप होय। ताकै दान की अभिलाषा होय । दिन-दिन कुटुम्ब तें जाकी प्रोति बधै। माता-पिता का चित्त उदार होघ । माता-पिता कुटुम्ब-जन के तथा पर-जन के सत्कार रूप प्रवत। माता के चित्त में उज्ज्वल भली वस्तु आचार सहित उपजो ताके खावने की अभिलाषा होय तथा माता-पिताकू दीरघ धन का लाभ होय। मातापिता कोई दीन-दुखो दरिद्री कौं देखें तौ तिनका चित्त दया रूप होय इत्यादिक शुभ लक्षण सहित शुभ जीव का अवतार जानना। ५२ । बहुरि शिष्य पूछी। है नाथ ! पापात्मा का अवतार कैसे जान्या जाय? तब गुरु कहीजाके गर्भ में आवते माता-पिताको दुःख-संकट होय। अभक्ष्य वस्तु सावने पर मन चले। माता-पिता का वित क्रूर होय। चित्त उद्वेग रहै। कुटुम्ब में क्लेश बधै। माता-पिता के मन में सूमता प्रगटै। क्रोध, मान, माया, लोभादि कषायन की तीव्रता बथै । माता-पिता का चित्त, दुराचारमयो होय । घर-धन नाश होय तथा माता-पिता की मृत्यु होय इत्यादिक चिह्न गर्भ में आवत होंय तब पापाचारी जीव का अवतार जानना। ५३ । बहुरि शिष्य प्रछी। हे गुरो! अनेक भोग योग्य वस्तु, अन्न, मेवादि षटरस का भोगी. सुगन्धादि भली वस्तु का भोगनेहारा जीव किस पुण्य तें होय? तब गुरु कही—जिनने पर-भव में दीन-दुःखी जीवनकं देख दया-भाव करि दान दिथे होंय तथा पर-भव में मुनि-श्रावक की भक्ति सहित दान दिये होंय औरन कू दान देते भले जाने होंय और जीवन कौ भला अन्न, मेवा, मिठाई खावते देख, अनेक सुगन्धादि सहित सुख देख, आपने हर्ष याया होय इत्यादिक शुभ भावन तें वांच्छित भोग योग्य, षट् रस मेवादि मली वस्तु का भोगी होय । ५४ । बहुरि शिष्य प्रश्न पूछो। हे गुरी! यह जीव अनेक उपभोग योग्य वस्तु विस्तर, आभूषण, मन्दिर, हस्ती, घोटक, रथादि बाहन, : । पालकी आदि बहुत पदार्थ का भोगी किस पुण्य तें होय? तब गुरु कही-जाने पर-भव में मुनिनको वस्तिका gAAA ४१४
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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