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________________ श्री टि Ex का रंगीला खण्ड है । तुच्छ मोल का है तू काहेकी द्रव्य खोवे है। ऐसे सर्व घसियारों के वचन सुनि खाने देखी जो अस्सी वर्ष के मनुष्य, घने जाननेहारे काँच खण्ड बतावें हैं सो प्रवीण हैं। ऐसे जानि वह ग्राहक रतन लेय जौहरी आया। और कहा - याकों तौ बड़ी-बड़ी उम्र के मनुष्य, कांच खण्ड बतावें हैं । तब जौहरी ने कही तुमने कौन को दिखाये ? उन जौहरीनि की दुकान कौन बाजार में है ? तब ग्राहक ने कही दुकान नहीं और जोहरी मी नाही, घास लकड़ी बेचे हैं। और बाजार में खड़े रहते हैं। तब जौहरी राजी भया । और विचारा जो यह तो घास लकड़ी के बेचनेहारे मूर्ख जीवन ने रत्न को कांच खण्ड कहा तो क्या भया ? उनका वचन प्रमाण नांही। ऐसे समभिकै जौहरी ने बुरा नहीं मान्या । और ग्राहक से कहा- इन रत्नों की परीक्षा घास लकड़ी बेचनेहारेनत नहीं होय है। कोऊ जौहरी को दिखावो। तब ग्राहक ने कही वे भी तो सौ-सौ बरस के बड़े हैं। तब जौहरी ने कही बड़े भये तो क्या भया, वह ज्ञान दरिद्री हीन बनज करनहारे रतनपरीक्षा के ज्ञान से रहित हैं। तातें भले रनकों कांच खण्ड कहना यह उनका वचन प्रमाण नाहीं । तातैं तुम कोई जौहरीकों बताव। शव उस ग्राहक ने एक बड़े जौहरी को दिखाये। तब जौहरी ने उस रतन को देखि सर्व जोग- अजोग जान्यां । कैसा है जौहरी रतनपरीक्षा का जाननहारा, विवेकी, सांची दृष्टि का धारी कहता भया । भो मित्र एक रतन तौ सर्वदोष रहित है सो लाखदीनार का है। एक रत्न में कछु कसरि है, तातें यह रत्न दस हजार दोनार घाटि मोल का है ऐसा जानना । तब ग्राहक आश्चर्यवन्त भया कहता मया, है सुबुद्धि मित्र ! इन दोऊ रत्न का एक-सा तौ रङ्ग है, एक-सा आकार है, एक-सा तौल है. इनके विषै मोल का अन्तर ऐसा कैसे भया, सो बतावो । अरु रतन का धनी जौहरी भी एक का घाटि मोल सुनि, अचिरज पाय उस बड़े जौहरी सों कहता भया । जो है मित्र ! त उस रतनको घास लकड़ी बेचनेहारों ने कांच खंड कहा तब भी उनको मन्दशानी जानि भगत भया । अरु तुमने याके दस हजार दीनार घाटि कहे सो हमको बड़ी चिन्ता भई, तुम विवेकी ही अनेक रत्न परीक्षा में प्रवीण हो अरु हमको ऐसे सूक्ष्मदोष भासते नाहीं, तुम्हारा वचन हमको प्रमाण है। तब उस बड़े जौहरी नै कहा— भी भ्रात तुम देखो, तुमको याके घाटि मोल का दोष बतावें । जा दोषतें याका मोल घटाया है। तब रं ३४ WEE पी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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