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________________ नता पाप-फल तें, धन रहित, धर्म विर्षे दगाबाज होय और जाने पर-भव में पराये ध्यान कौ दोष लगाय, हाँसि करी होय। सो ताके पाप से मवान्तर में दोष सहित, ध्यान का धारी होय । बगुला की नाई कुध्यानी होय। धर्म-अङ्ग सेवन करे, सो दगा सहित करें तथा पर-भद में दमा सहित धर्म के सेवनहारे तिनके पाखंड देख, तिनकी प्रशंसा करी होय इत्यादिक पाप मावन से जीव धर्म-दगाबाजी करनेहारा होय और जिन जीवन ने परभव में अन्य जीवनकौ कुटुम्बतें दगाबाजी करते देख, सुख पाया होय। ते जीव भवान्तर में कुटुम्ब त, दगाबाजी करनेहारे उपजें और जिननें पर-मव में दगाबाजी सहित आजीविका पूरी करते देख, तिनकी माया की प्रशंसा करी होय, सुख पाया होय। सो जीव भवान्तर में अपनी आजीविका दगाबाजी से पूरी करै, ऐसे होय और दगाबाजी के अनेक भेद हैं। सो पर-भव में जैसा दगा, भला लागा होय। तैसा ही दगाबाज उपजे है इत्यादिक भले धर्म-कार्थन की जैसी दगाबाजी के कार्य जाने होंय । तैसी ही जाति का धर्म-दगाबाज उपज है तथा जैसेकर्म-कार्यन को दोष दिये होंय, तिस जाति का कर्म-कार्यन में दगाबाज उपजे है। 801 बहुरि फेरि शिष्य प्रश्न पूछी। हे गुरो! यह जीव चोर कौन पाप तें होय? तब गुरु कही-पर-भव में चोरन को भले जाने होंय तथा चोरन से व्यापार करि, तिनका बड़ा नफा खाय, चोरन ते हित किया होय तथा चोरन का सहकारी होय, पराये धन हराये होंय। अपने मन में पराये धन चुराने की अभिलाषा रही होय इत्यादिक पाप भावन तँ जीव, चोर उपजै है।४। बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो 1 यह हिंसा का करनहारा जीव, कौन कर्मत होय ? तब गुरु कहीजिननें पर-भव में हिंसा भली जानी होय तथा हिंसक जीवन कू हिंसा करते देख. तिनकी अनुमोदना करी होय तथा पर-भव में हिंसा करने की अनेक कला-चतुराई सीखी होय तथा पर-भवमैं आपने अनेक हिंसा के उपकरण बनाये होंय तथा तीर, तुपक, जाली, फन्दा, चेप, गुलेल, सेल्ह, बी आदि अनेक शस्त्र राखि, आप सुख पाथा होय तथा शस्वन के उज्ज्वल करने की, तीक्ष्ण करने की चतुराई पर-मव में करी होय तथा पर-भवमैं शस्त्र बेंचे होंय, बनाये होंय इत्यादिक पाप ते पर-भव में शस्त्र ते मरै तथा माप हिंसक होय । ४२ । बहुरि शिष्य प्रश्न किया। हे जगत् गुरो! यह जीव क्रिया रहित अनाचारी किस पापत होय जाकौ खान-पान की संधि नाही, विकल्प भाव सहित सदव रहै। सो कौन पाप का फल है। तब गुरु कही-जिनने पर-भव मैं शुभ आचारी ११
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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