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________________ श्री सु ? 應 ४०४ सुनि सज्जन स्वभावी होय तथा पर-जीवन की सज्जनता देखि हर्ष पाया होय। बड़े गुरुजन की सेवा, चाकरी. शुश्रूषा करी होय । इत्यादि पुण्य तैं सज्जन स्वभावी होय । २०। तब फेरि शिष्य ! । हे गुरो ! ये जीव समता भावी कौन पुण्य तैं होय है ? तब गुरु कही है धर्मार्थी सुनि जे भव्य जीव पर भव में मुनि श्रावकन की शान्त मुद्रा देखि हर्षे होंय तथा जिनेन्द्रदेव की शान्त मुद्रा देखि पद्मासन कायोत्सर्ग मुद्रा देखि जिन ने अनुमोदना करो a होय तथा पर- जीवन के क्रूर वचन सुनिकै समता घर तिन पर क्रोध भाव नहीं किये होंय । औरन की क्रूरता देखि पने तिन पै दया करी होय तथा संसार की विडम्बना देखि संसार तैं उदास भये होंय तथा धन-तनादि सम्पदा सामग्री चञ्चल देखि राग-द्वेषादि भाव दुःखदाता जानि क्रोध मानादि तजि मन्द कषाय रह्या होय इत्यादिक शुभ भावन तैं समता भाव प्रगट होय है । २१ । तब फेरि शिष्य प्रश्न करता भया । हे जगत्गुरु! यह जीव धर्मात्मा कौन पुण्य होय ? तब दयालु-भाव सहित गुरु ने कही हे भव्यात्मा है भद्र परिणामी जिन जीवन तैं नैं पर भव में महासमता भाव राखे होंय । धर्मात्मा जीवनको धर्म सेवन करते देख अनुमोदना करि पुण्य उपाया होय तथा अनेक जीवन में दया भाव किये होंय तथा धर्म उत्सव देखि हर्ष पाया होय तथा धर्म के अनेक भेद हैं। सो जिस जाति के धर्म अङ्ग देखि श्रापको अनुमोदना उपजी होय । तिस ही जाति के धर्म अङ्ग का लाभ पर भव मैं जीवक होय है। सो ही कहिये है - जिस जोव ने पर-भव विषै और धर्मात्मा जीवनको तप करते देखि हर्ष किया होय। तपस्वी पुरुषन की सेवा चाकरी करो होय। तप कौं उत्कृष्ट सुखदाता जानि ताके करवे की अभिलाषा करी होय इत्यादिक तप अङ्ग की अनुमोदना के फल तैं भवान्तर में तप धर्म का लाभ पावै । बहुरि जिन ने औरनक भगवान् की पूजा व स्तुति करते देखि अनुमोदना करो होय तथा भगवान् के भक्त जन देखि तिनमें प्रीति भाव करि तिनकी सेवा-चाकरी करि होय। श्रापक भगवान् की पूजा करने का अभिलाष बहुत रह्या होय इत्यादिक पूजा की अनुमोदना चाहि रूप भव पटल तैं भवान्तर में प्रभु की पूजा के भाव होय । पूजा धर्म अङ्ग पावें और जिन जीवननें पर भव में अन्य जीवन कूं नियम आखड़ी करते देख तथा घृत दुग्धादि रसन को त्याग करते देख तथा ताम्बूल वस्त्रादि परिग्रह के प्रमाण करते देखि तथा दया भाव सहित प्रवृत्ति देख तिनकी प्रशंसा करी होय तथा अन्यकूं संयमी देखि संयम की अभिलाषा की होय इत्यादिक संयम की अनुमोदना x.x ठ रं गि पौ
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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