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________________ परको अन्धा भया जानि अनुमोदना करी होय । अन्धे जीवन को हाँ सि करि बहकाया होय । अन्धेन का धन, वस्त्र बल-बल करि हरचा होय इत्यादिक पापन तैं जीव अन्धे होंय तथा नेत्र रहित तेइन्द्रिय आदि अन्धे जीव उपजें हैं। २ । बहुरि शिष्य पूछ है । भो प्रभो ! जीव बधरे कौन पाप त होंय ? सो दया करि कहौ । तब मुनि कही—जे जीव अपने काननतें विकथा सुनि हर्ष पाया होय । सत्य वचन सनि ता असत्य कहा होय । मुठा वचन सुनि जानि सहि तय करिनान्या हाय सबा अपराधी चुगलन के मुख से असत्य पापकारी वचन सुनिक पर-जीवन पर दोष लगाए घर लुट्या होय । दण्ड कर दिया होय । घर, स्त्री. गज, घोटकादि खोंस लिये होय । औरन के कान द्वेष-भाव करि छेदन किये होंय तथा औरन कं बधरे जानि कुवचन बोले होंय तथा परकं बधिरे जानि ताकी हाँ सि कौतुक करि हर्ष मान्या होय । पराये दीनता के वचन न्याय रूप सुनिक जनसुने किये हाय तथा दोन पाय-आय याचना रूप वचन कहैं तितकं सुनि मान के जोर से जबाब नहीं दिया होय तथा अन्य जीवन में आपकू मला मनुष्य जानि विनय-वचन कहे नमस्कारादि किया तिनकौं मानो होय पोछे प्रति उत्तर नमस्कारादि नाहीं करया होय। सुन्या-अनसुन्या किया होय इत्यादिक पापन तैं बधिरा होय है तथा कान रहित चौइन्द्रिय होय है ।। पोछे और प्रश्न शिष्य करता भया। हे यतिनाथ ! लला कौन पाप नै होय? तब यति कही-हे वत्स! जाने पर-भव मैं अपने हाथ तैं पर के पाँव तोड़े होंय तथा दीन पशूनकं लाठी-लाठो मारि दया रहित चित्त करि तिनके पांव तोड़े होय तथा शस्त्र तें दीन पशन के पांव तोड़े होय । पर कौं लला-पग रहित जान ताका वस्त्र वासनादि ले भागा होय तथा पर के पाँव छेदतें आप खुशी भया होय तथा इस कौतुक क देख हर्षाया होय तथा पर कौं लंगड़े जानि बहकाये होय, ताकी हँसी करी होय इत्यादिक पाप तें लंगड़ा होय तथा पवि रहित, हलन-चलन रहित राकेन्द्रिय होय ।३। बहुरि शिष्य पूछो हे नाथ! मुख रहित तथा मुख सहित मका, कौन पाप तें होय ? तब गुरु कही-हे वत्स सुबुद्धि ! चित्त देय सुनि। जिन जोवन नैं पर के मुख मंदि, तिन्हें शस्त्र मारे होंय तथा मुख में शस्त्र घालि, वचन बन्द करि, दुःखी किया होय तथा पर कौ भले वचन बोलते देखि, ताकी मने किया होय तथा मुख पाय के असत्य बोलिक, अन्य जीवन का बुरा किया होय तथा रसना इन्द्रिय का लोलुपी बहुत रह्या. ताके निमित्त अनेक जीवन को हिंसा करी होय तथा
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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