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________________ २६१ धन छिनाय लेय के भिखारी-सा करि डाले। तातें जे समता रस के स्वादी निराकुल भोग के वच्छिक हैं। ते इन्द्रिय-भोगन के मारा मी चित्तक नहीं चलावै। ऐसे कहे जे ज्ञान, तप, चारित्र, संयम, शुभ-ध्यान, सम-भाव रा सर्व गुण जगत् पूज्य हैं। सो इन गुण रतन ठगवेक इन्द्रिय-सुख चोर रूप हैं। तातें जो अपने धर्म गुण को बचायवे को चाहि होय तौ इन्द्रिय-मोगकू धर्म के काल में नहीं सेवना योग्य है। आगे इष्ट-वियोग के दोय भेद हैं, सो बतावे हैं। गाया-जुगभे यंठ वियोगो, इकासो इम होय णय आसो । मिति खय विणासउ, आसय जे भिण गमण उ अण ठणय ॥११॥ अर्थ-जुगमे यंठ वियोगो कहिये, इष्ट-वियोग के दीय भेद हैं। इकासो कहिये, एक बाशा सहिता इंग होय गय आसो कहिये, एक बिन आशा थिति खय कहिये, स्थिति के क्षय भए । विणासउ कहिये, सो बिन आशा। आसय जे कहिये, आस सहित जो। भिगमरा उ अरण ठराय कहिये, और स्थान जानेकुं भिन्न होय गमन करें। भावार्थ-संसार विर्षे इष्ट वस्तु चेतन-अचेतन इनका वियोग होय है। ताके दोय भेद हैं। सो हो कहिए हैं। चेतन इष्ट जे माता-पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोटकादिक चेतन पदार्थ। इनके वियोग के दीय भेद हैं। एक तौ आशा सहित वियोग है और एक आशा रहित वियोग है। तहां जिस चेतन पदार्थ की आयुस्थिति पूरण होय करि जो आत्म पर्याय छोड़ि परलोक को गया सो अब यात वियोग भया सो अब फेरि मिलने की आशा नाहीं। ए तो आशा रहित वियोग है और कोई अपना इष्ट एक स्थान से भिन्न होय बिदा मांगि परदेशगमन किया सो र आशा सहित वियोग है। यातें मिलने की आशा है। ऐसे वियोग के दोय मेद हैं। सो मोह सहित जीवन के आशा सहित वियोग में तो अल्प दुःख होय है और आशा रहित वियोग में बड़ा दुःख होय है और अचेतन पदार्थ, रतन आभूषण, वस्त्र मन्दिरादिक काहू को मांगे दिख होय तथा कर्ज के निमित्त काहू को धन दिया होय। इत्यादिक बातन करि धन का वियोग होय सो आशा सहित वियोग है। या धन के आवे की अभिलाषा है ताकी अल्प चिन्ता है और जो धन अचेतन वस्तु चोरी गई होय, अग्नि में जली होय। काह गिरासियादि जोरावर ने खोसि लई होय इत्यादिक स्थान मैं गई ताके आवे की आशा नाहीं। सो निराशा वियोग है। याका विशेष दुःख होय है। रोसो जगत् जीवन की रोति है और जे विवेकी सम्यग्दृष्टि पुरय-प्राप ६९
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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