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________________ १२३ करना योग्य है। आगे रोती वस्तु काहू के कार्यकारी नहीं, ऐसा बतावे हैंगाथा-सर-बल-गत तरु-छाया, सृत-मण गत धण-दामा पृस्ता-आधाज! ! तन मन सावर, दव प्रम-गत-गरणेष-गप काया। अर्थ-सर जल गत कहिये, सरोवर तौ नीर रहिन । तरु छाया गत कहिये, वृक्ष छाया रहित । सुत गुण गत | कहिये, पुत्र गुण रहित । धनदारा-गत कहिये, धनदान रहित । पुस्स गंधाऊ कहिये, फूल सुवास रहित । । कण्णा तब गत साधऊ कहिये, दया-भाव रहित साधु । इव धम्म गत पर कहिये, ऐसा हो धर्म-रहित मनुष्य । । रोण गय काया कहिये, जैसे—नेत्र रहित शरीर। भावार्थ-सरोवर की शोभा जल है। सरोवर का विस्तार | तो बड़ा होय । पक्की-सुन्दर पारि होय । रोसे सरोवर में जल नहीं होय । तौ जल रहित सरोवर वृथा है और वृक्ष की शोभा, छाया रौं है । वृक्ष बड़ा होय । दूर से दीखे, ऐसा है । अरु छाया रहित है। तो वृथा है। पुत्र की शोभा सुपत है। सुपत-पुत्र सबकं सुखकारी है और पुत्र तौ है। परन्तु अनेक दोष सहित होय, अविनयी होय, व्यसनी होय, ऐसे अपयशकारी, अवगुण करि सहित होय, गुण-रहित पुत्र होय, तो वह पुत्र वृथा है। धन है, सो दान तें सफल होय है। धन तो बहुत है, किन्तु दान रहित है, तो धन वृथा है और फूल है सो सुगन्ध तैं भला लागै है । फूल दीखने का तो भला है, परन्तु सुगन्ध रहित है । तो वह फूल वृथा है। साधु है सो दया-भाव सहित, महातपस्वी होय, सौ पूज्य है और साध है अरु दयाभाव रहित है। तप भावना रहित, दीन होय । तौ ऐसा साधु वृथा है । शरीर है, सो नेत्रन तें सफल है। जो शरीर तो है, किन्तु नेत्र रहित है। सो काया वृथा है। तैसे ही मनुष्य पर्याय, धर्म तें सफल है और जैसे-ऊपर कहे-सर, जल बिना वृथा है। तरु, छाया रहित वृथा है। इत्यादिक कहे ए वृथा-स्थान तैसे ही धर्म बिना, मनुष्य-पर्याय वृथा जानना । तात विवेकी हैं, तिनको पाई पर्याय कौं, धर्म विर्षे लगाय, सफल करना योग्य है। आगे ये वस्तु पर-उपकार की बनी हैं, सो बताईये है गाथा-सरता-पय पुख-मंघड़, तरु-साया-फरल ईस-मधुराई। सजण तणधन वाचर, इपर-उवकार कारण सव्वे ॥ २॥ ३२३ अर्थ-सरता पय कहिये, नदी का नीर । पुख-गंधउ कहिये, फूल की सुवास । तरु साया फल कहिये, || वृक्ष की छाया व फल। ईस मधुराई कहिये, ईख जो सांठे का मिष्टपना। सज्जरा तरा धरण वाचऊ कहिये,
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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