SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सु fe ३२० ता विवेक हैं तिनकू शकूं व सुखकूं बन्धून विषै स्नेह-भाव राखने का उपाय राखना योग्य है और जिन जीवन कैं रावण की नाई तीव्र कषाय उदय आवैं तब वन्धु विरोध होय ऐसा जानना आगे न्याय मार्ग की भरन्तता बताइए है और अन्याय का फल कहिए है गाथा - जुगभट रघु हरि व्यायो दहसिर जय सेन सहित जस पायो। दहमुख ठाण अण यो कुलबलतण णास अयस दुगताई ॥ ७९ ॥ अर्थ - रघु हरि दोऊ ही भटों ने न्याय के प्रसाद तैं दसशीश सैन्या सहित जीत यश पाया। अरु दसमुख अन्याय करि कुल फौज निज तन इनका नाश कौर अपयश पाघ दुर्गति गए । भावार्थ - राम-लक्ष्मण र दोऊ महासुभट सर्व राजनीति के बैना आए दो भाई रावण के जीतनेकौं लङ्का चालनेकों उद्यम भरा। तब सुग्रीवादि बन्दर वंशीन के राजा सर्व आय कहते भरा । हे स्वामी! वह महायोद्धा है। तीन खंड के सामन्तन के जीतने का उस एकले में बल है। ऐसा रावण महापराक्रमी चक्र का धारक तीन खण्ड का नाथ ताके संग अनेक विद्या के नाथ बड़े राजा अनेक देव जाके आज्ञाकारी और हजारों देव जाके तन की रक्षा करें हैं। ऐसा जो रावण ताके जीतने इन्द्र भी सामर्थ्यवान् नाहीं है। ऐसे त्रिखण्डी नाथ के जोतने कौं उद्यमी भये हो सो तुह्यारा उद्यम कैसे पूर्ण होगा? और कदाचित् ये बातें रावण ने सुनी तो तुह्मारा तन सहज ही सङ्कट में पड़ेगा सो तुम विवेकी हो विचार देखो। तुम तो दो भाई हो अरु रावण पृथ्वीनाथ है। कैसे जीत पावोगे। तातें विचार कैं उद्यम करना योग्य है । इत्यादिक रावण के पराक्रम की बात सर्व विद्याधरों ने कही। तब इन विद्याधरों के वचन सुनि कैं दोऊ भाई निशङ्क होय कहते भये । भो विद्याधीश हो। तुमने रावण के बल पराक्रम पुण्य की महिमा हमारे आगे कही तुमकों रावण ऐसा ही भार्से है। जैसे—अनेक बिना सींग के भेड़न का समूह तामैं एक श्रृङ्ग का धारी मोढ़ा होय है। सो सर्व भेड़नकौं बली हो दीखे है । यह अज्ञान मेड़न का समूह ऐसा नाहीं जाने है, जो यह फलानी भेड़ का बच्चा है। सो जेते हम हैं तैंसा हो ये है। हमसे ही याके माता-पिता हैं। परन्तु या श्रृङ्ग देखि सर्व भेड़ उस मोढ़ा तैं भय खाथ डरें हैं। सो मोढ़ा सर्व भेड़न के समूह कौं बली भार्से है। सो सर्व भेड़-बकरी उस मोढ़ा के दास होय उसकी आज्ञा मानें हैं और वह मोढ़ा उन सब बकरी-भेड़न का नाथ होय अनेक मैल अपनी अ (रूप देख तिन सहित वह मोठा महामानी भया स्वच्छन्द होय वन दिषै बांका-बांका ि ३२० G रं नि 5
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy