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लौकिक में भी ऐसा कहैं हैं कि कायारा धान है त, वाम गाधनी मौरी कहाँ हो ? लाला समाधानहे मन्यात्मा! तैने कही सो सत्य है। तेरा प्रश्न हमारे उपदेशतें मिलता ही है और लौकिक में कहैं हैं, सो भी प्रमारा है ये भी सत्य है। परन्तु याका भोले जीव भेद नाहीं जानैं हैं लौकिक में काया रासै धर्म कहैं हैं, सो सत्य है। याका स्वरूप आगे कहेंगे। अरु लौकिक में भोले या कहैं जो अपनी काया रासै धर्म है, सो रोसा नाही। काया राखै धर्म कैसे रहै ? सो हो कहिये है। सो हे भव्य ! तु चित्त देय सुनि। तूने प्रश्न मला किया। घने जीव का संशय मेटनेहारा तथा तेरा संशय मेटनेहारा प्रश्न है। सो तू उत्तर कुंचित्त देव सावधानी से सुनि । तोकू हम पूछे है जो एक शूरमा है। ताकौं कोई बड़े योद्धा मैं माय ललकारचा। कही-वह शूरमा कहां जाका मैं नाम सुन्या करौं हौं। वह महायोद्धा होय शूरमा होय तो मोते आय युद्ध करै। ठाके हस्त में बड़ा शस्त्र है। देख्या सो ही मारथा। सो अब इस शरमा कौ कहा योग्य है ? इसका धर्म कैसे रहै ? इस वैरी के सन्मुखाय युद्ध में अपनी काय शस्त्रन तै खण्ड-खण्ड करि मरै तो धर्म रहै ? तथा भागकै अपना तन रावै तौ धर्म रहै ? सो कहौ। तब वाने कही-भागि जाय तो निन्दा होय । शूरमा तो मरै तबही धर्म रहै । तब तोकं कहिये है। हे भव्य! यहाँ काया अपनी राखें धर्म रहै । ऐसा कहना मुठा मया । अपनी काया राबै धर्म रहै। तो शरमा मरता नाही। तात जे विवेकी हैं सो धर्म राखवै कौं काय भी तजि धर्म राखे हैं। ऐसा जानना। ऐसे धर्मकं पुर धन कुल काय सबही तजें हैं जौर धर्म राखे हैं। अब सुनि तैने कही जो काया राक्ष धर्म है। सो श्रेष्ठ धर्म है । यो भी जिनेन्द्रदेव का उपदेश है। जो काया राखें धर्म है। परन्तु ज्ञान-अन्ध प्राणी इसके भेदकं पावें नाहीं हैं। धर्म तो काया राखे ही है सो तुम सुनौ । अब यामैं भेद-भाव है । सो अन्तर भैद कहिये है। काय मैद षट् है। सो इन षटकाय
की रक्षा सो हो धर्म । सो कहैं हैं। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, श्रसकाय-ये | षट् काय हैं इनको राखे सो धर्म है। पृथ्वी जो भूमि ताहि बिना प्रयोजन खौदै नाही, जाले नाही, पोर्ट नाहीं
इत्यादिक पृथ्वीकाय की रक्षा करि दया-भाव करि हिंसा नाहीं करे। सो पृथ्वीकाय की रक्षा है। अपकाय को | जल सो जलकं बिना प्रयोजन जारे नाहों, नाखे नाही तथा प्रयोजन होय तहाँ जतनतें धी तेल की नाई जलकं वर्ते। । बिना प्रयोजन डार नाही ऐसे जलकाय की रक्षा करें और अनिकाय हैं बिना प्रयोजन तो बारम्भ नहीं करिए।
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