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________________ २९८ || लिये जोड़-कला करैं हैं। सो इस ज्ञान का फल धर्म मोंक ही उपजौ ऐसी वाच्छा लिये शास्त्रादि जोड़ें हैं।। कोई तो ऐसे हैं सो इन्हें धर्मात्मा जानना और केई जाचक-जीवन के श्रतज्ञान की विशेष बढ़ती है। सो र जाचक छन्द, काव्य, गीत इनकी जोड़-कला करें। सो इनका अन्तरङ्ग उदर भरने का है। जो हम कोई राजादि बड़े पुरुष का यश करें तो ग्राम, गज, धोटिक धन मिले। ताकरि सर्व कुटुम्ब की प्रतिपालना होय । फलाना राजा यश का लोभी यश चाहै है । अरु वित्त का उदार है। ऐसे पुरुष का यश करे तो बहुत दिन की आजीविका मिले। सो जाचक उस राणा के राजी करने कौं अनेक छन्द, गीत, कवित्त, काव्य, श्लोक बनावे। सो अपनी बुद्धि के जोगते जोड़-कला करै। तामैं दीरघ छन्द महासरल अक्षर, महाललित व्यजनों का सुन्दर मिलाप इत्यादिक अन्तरङ्ग अभिप्राय सहित ज्ञान से जोड़-कला करै। सो जाचक जानना। अर केई जीव भला ज्ञान पाय, बुद्धि का प्रकाश पाय, जोड़-कवित्त करें। धन्द व गीत बनावें। सो जोड़-कला करते उनकै ऐसे अन्तरङ्गका अभिप्राय होघ । जो हममें बड़ा ज्ञान है सो कोई ग्रन्थादि काव्य, छन्द बनाइये तो जग में पण्डितपना प्रगट होय यश होय। ऐसा जानि केई तो यश के लोभकौं जोड़-कला करें। केई अज्ञानी इन्द्रिय सुख भोगनेकों जोड़-कला करें हैं ते पापो जानना और केई भाड़न में तीक्ष्ण श्रुतज्ञान होय है। सो मांड़ भी जोड़-कला करै हैं । सो ऐसी अनोखी नकलें जोड़ें। रौसी वात बनाय ठाढ़ी करें। कि ताकी जोड़-कला देखी अनेक मनुष्य राजी होय हंसें प्रसन्न होंय । मोड़ की तारीफ करें। ऐसी नकलें अपनी बुद्धित ज्ञान के जोगतै जोड़ि के औरनकों प्रसन्न करें। सो पर के रायवे कौं गीत, काव्य, गाथा, छन्द, कथादिक जोड़ें सो भांड़ कहिये। भौड़ का अभिप्राय जोड़-कला करते पर के रायवे रूप होय है और केई निर्लजी जीवनकौं भी ज्ञान की बढ़वारी होय है । सो र निर्लज पुरुष जोड़-माला करें। सो याकी जोड़-कला हांसी-कौतुक के निमित्त है । जैसे- काहु जीवन तें होरी के भंडउवा जोड़े तथा का निर्लज्ज स्त्री ने बड़ा ज्ञान पाय पापनी मैं गावे के निमित्त गाली-गीत बनाये, ताका गावना । सो श्रोता ताको जोड़ि-कला सुनि के विकारी-जीव लज्जा रहित हाँसि-कौतुक रूप प्रवृत।। २९८ । | ऐसी जोड़-कला के ज्ञान-धारी जीव होंय, सो निर्लज्ज कहिए। ऐसे पञ्च प्रकार जोड़-कला करने के मुखिया हैं। तिनमें जे सुबुद्ध पुरुष है सो बुद्धि पाय, धर्म-फल के इच्छुक होय, धर्ममयी, दया सहित, पुण्यदायक जोड़-कसा
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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