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________________ करते पाँच-च्यारि सेर इकदा भया। तब कोई पापी, अन्यायी निर्दयी अन्न के भने, लोभी, निर्धन, भोलादिक । ने पाय चींटीन का घर जानि, तिन बिल की धरा खोदि, अन्न लिया। सो है भव्य ! हो देखो। इन चोंटीन का लोभ-स्वभाव जगत में प्रगट, सब जाने थे। जो चीटो अन्न जोड़ि इकट्ठा करे हैं। ता संचय के निमित्त से कोई दुष्ट प्राणी, पराये माल के खानेहार नं, घरको फोड़या। सो घर कामाश भया आर घर के क्षय तें, चोटीन के तन का नाश भया, अन्न गया। सो ये प्रगट देखो। एते दुख, अन्न संचयतें भये। जो आप खाय लेतो, तो दुख नाहीं होता। तात जे विवेकी हैं तिनकौं अपने कमाये धन कौं, अपने हाथ ते भोग लेना योग्य है और मानीन का समूह वनस्पति का रस अपने मुख में ल्याय उदर मैं खाया पीछे अज्ञानता करि, मोह के मारे, लोभ धार मुख को राह होय उदर का खाया रस हुलक करि पीछे काढ़या आप भूखी रह उसे संचय किया। सो चोरन के भय ते आकाश विर्षे जाय, एकान्त जगह छत्ता बान्धा। अपने ज्ञान प्रमाण, बहू यत्र से बड़ा विषम स्थान देखि, छत्ता करि तामैं जुदा घर बनाय, सर्व माखीन ने अपना-अपना रस. भेला किया। जब बहुत दिनन में सर्व के घर, रस तं भरि गये। इकट्ठा बहुत भया । तब कोई पापीजन-लोभी के नजर छत्ता आया। याने जानी, यामैं बहुत मधु है। सो लेने का उपाय किया। सो जायगा महाविषम, उत्तंग देखि, दाव नहीं देख्या। तब लोभी ने नीचे आग जलाई। बहुत धूम करी। सो धुम के निमित्त पाय, दुखी होय, सब माखी उड़ गई। तब धाने छत्ता बांस से तोड़ि लिया। माखी थान प्रष्ट भई। दुखी होय, दशों दिशा में भ्रमती भई। सो देखो, इन लोभ करि भतीही रह के, पेट का उगला काढ़ि इकट्ठा करि जोड्या था, ताके योग से दुखी भयो। जोड्या रस गया। जो खाय लेतीं, तो खेद नहीं होता। सो देखो, माखी ने तो लोभ किया जो उलाक को सच्या। परन्तु जग में ऐसे-ऐसे लोभी-दरिद्री पड़े हैं। सोमास्त्री का उलाक भी नहीं देखि सकें। सर्व लिया। तो ऐसा लोभी, मनुष्यन का उलाक कैसे छोड़े? ऐसे लोभी-बुद्धिको धिकार होऊ। तातें जो लोभी धन पायके धर्म में लगाय, नाही भोगवेगा, सो मासीन की नाई दुख पावैगा जो सूम जन हैं सो भी चोटी नाई माल जोडि-जोडि खेद खाय तो इकट्ठा किया। २९। सो मूर्खन नाहीं तो जाप खाया, नाहीं और कू दिया, नाहीं धर्म में लगाया. नाही कुटुम्बकू खुवाथा ! आप भूखा रह, सुच्छ खाय मोटा वस्त्र पहिरदीन वृत्ति धारि माल जड़या। बहुत भय भये धरती में धरचा। जब आप मुवा
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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