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________________ । का ' कफ, खांसी, कुष्टादि रोग देखि क अपने चित्त में ग्लानि करनी सो दुगंछ । विचिकित्सा) नामा सम्यक्त्व का दोष है। ३। और विना परीक्षा देव, गुरु, धर्म की सेवा करनी सो सम्यक्त्व-धर्म का मढ़ता नामा दोष । है। ४। और पराये दोष प्रकाशि, परक दुःख उपजावे. सो सत्यधर्मकौं घाति परदोष कहना ( अनुपराहन) दोष है।५। और धर्म सेवन करते अपने परिणाम अथिर राखना तथा औरनि को धर्म-सेतर करते देख तिनको अधिरता उपजावनी सो अस्थितीकरणनामा सम्यक्त्व का दोष है । ६ । और जाको धर्मात्मा जीव तथा धर्म की चर्चा धर्म-कथा धर्म-स्थान धर्म उपकरण धर्म-उत्सवनि विर्षे द्रव्य लगता देखि इत्यादिक धर्म-वार्ता जाकौ नांहों सुहावै सो वात्सल्य भावरहित अवात्सल्य दोष है । ७ । और जाकू धर्म के उत्सव नाहों सुहावै सो अप्रभावना नामा आठवां दोष हैं। ८। इति सम्यक्त्व के आठ दोष। आगे षट अनायतन दिखाईये है तहां खोटे देव को प्रशंसा करनी, रागी द्वेषी परिग्रही जीवनि के गुरु जान प्रशंसा करनी और दयारहित हिंसा पाखण्ड विष का प्ररूपण हारा असत्यवादी ऋज्ञानी जीवनि के कल्पनामात्र करि किया जो कुधर्म ताकी प्रशंसा करनी। और खोटे, कामी, क्रोधी, भयानीक, कुदेवनि के सेवकनि की प्रशंसा करनी। और कुगुरुनि के सेवकनि की प्रशंसा करनी। और कुधर्म के सेवकनि की प्रशंसा करनी श षट अनायतन सम्यक-धर्म के दोष हैं। तात जे सम्यकदृष्टी हैं सो इनकी प्रशंसा नहीं करे हैं ॥ इति षट् अनायतन ॥ आगे तीनि मूढ़ता लिखिये हैं सो जहां विना परीक्षा देव-पूजा करनी सीस नवावना सो देवमूढ़ता है। और जो विना परीक्षा गुरु को सेवा-पूजा करनी सोस नवावना सो गुरुमूढ़ता है। २१ और विना परीक्षा धर्म का सेवन करना सो धर्म मूढ़ता है। ३. ऐसे कहे जो जष्टमद, अष्ट सम्यक्त्व के दोष, षट अनायतन तोनि मढ़ता र सर्व पञ्चीस दोष सो इनरहित होय सो सम्यक्त्व शुद्ध है ।। इति सम्यक्त्व के पच्चीस दोष । आगे सम्यक्त्वके अष्टशुरण बताइये हैं। इन अष्टगुण सहित सम्यक्त्व होई सो शुद्ध है। निःशङ्कित निःकांक्षित निर्विचिकित्सिता अमढदृष्टि उपगृहन स्थितीकरण वात्सल्यतः. प्रभावना | यह सम्यक्त्व के आठ गुण हैं। इन सहित सम्यादर्शन उज्ज्वल होय है सोई कहिये है। धर्म सेवन करते कोई देव व्यन्तर तथा पापी कुटुम्बीजन तथा पंचादिक की शंका नहीं करना। निःशङ्क होय धर्म सेवन करना सो | निशङ्क गुण है सो यह गुण अंजनचोर ने पाल्या है। शधर्म सेवनि करि पंचेन्द्रिय सुखनि की वांछा नहीं करनी १५
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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