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________________ और चौदहवें भेद में जो जीव तेरहवें ते असंख्यात गुणी क्षेत्र की जान, सो ही जीव काल अपेक्षा, तेरहवें ते श्री | असंख्यात गुण काल की अगलो-पिछली जान है ।२४। ऐसे चौदहवें तें पन्द्रहवा ।१५। पन्द्रहवें ते सोलहवां ।२६।। २६१ सोलहवं ते सत्तरहवां ।२७। सत्तर अठारहवां । २८। अठारहवे ते उगसोसवा । १६ । ए परस्पर क्षेत्र-काल अपेक्षा असंख्यात-असंख्यात गुणे बधते जानना। ऐसे करते अन्त के भेद में देशावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र लोक प्रमाण है और काल-अपेक्षा एक समय घाटि एक पल्य काल की अगली-पिछली जाने है। ऐसे त्रिकाल सम्बन्धी क्षेत्र काल का विषय प्रमाण जघन्यतें लगाय उत्कृष्ट पर्यन्त देशावधि का विषय का है। सो अपने विषय योग्य क्षेत्र काल में प्रवत्तते पुद्गल स्कन्धन की संसारी जीवन की पर्याय पलटणि रूप क्रिया जाने है। इस तीन सौ तेतालीस राजू लोक क्षेत्र में जोव-अगोव पर्याय जैसे-जैसे मई आगे होयगी और हैं। सो तीन काल सम्बन्धी अपने विषय प्रमाण क्षेत्र-काल की जान, सो देशावधि कहिए । इति देशावधि । आगे परमावधि का संक्षेप कहिये है। परमावधिवाला यति देशावधितै असंख्यात गुणी क्षेत्र काल की जान है सो क्षेत्र-अपेक्षा तौरोसे-ऐसे असंख्याते लोक क्षेत्र की जान है और काल की अपेक्षा सागर की अगली-पिछली जान है । इति परमावधि । आगे सविधि का संक्षेप कथन कहिये है । सो परमावधितै असंख्यात गुरखा क्षेत्र काल की सर्वावधिधारक यति जान । इति सर्वावधि। रोसै अवधिज्ञान के तीन भेद कहे, सो यह अवधि दोय प्रकार है-एक भव-प्रत्यय और एक गुण प्रत्यय । तहां गति स्वभावतें जन्न धरत अवधि होय, सो भव-प्रत्यय कहिये। सो देव, नारकीकै तथा तीर्थङ्करके होय, सो भव-प्रत्यय है और जहां-तहां तप संयम तथा भगवान के दर्शनः स्तुतिः परिणामन की विशुद्धतातै अवधिज्ञान होय, सो गुण-प्रत्यय है। ऐसे सामान्य अवधिज्ञान का स्वरूप जानना। इति अवधिज्ञान संक्षेप सम्पूर्ण। आगे मनःपर्यय-ज्ञान का सामान्य भाव कहिये है गाथा-मण पजयणाणावण्णी, खयोपसमज्जस्स होइ सो जीयो । मण पज्जयक्यु पामई, दो भेयो होइ उज्जु विउलमयी ॥४७॥ २६१ ___ अर्थ मनःपर्यय-ज्ञातावरणीय ताका क्षयोपशम जा जीव के होय, सो मनःपर्यय-ज्ञान पावै। सो ज्ञान | ऋजुमति, विपुलमति भेद करि दोय प्रकार है। भावार्थ-जिस जीवकै मनःपर्यय ज्ञानावरशी का क्षयोपशम होय है। ताके दोय प्रकार-जुमति और विजुलमति मनःपर्यय ज्ञान होय है। सो इनका विषय कहिये है। तो
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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