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________________ श्री सु 碟 f २५८ [ विशेष इनका श्री गोम्मटसारजी के श्रुत ज्ञानाधिकारतें जानना। ऐसे यह श्रुत ज्ञान कया। सो यह श्रुत ज्ञान, केवलज्ञान की-सी महिमाको घरै है । केवलज्ञान तो प्रत्यक्ष हैं। अरु श्रुत ज्ञान परोत है। परन्तु केवलज्ञान समान, लोकालोक तीन काल सम्बन्धी सकल-तत्त्व-प्रकाशी है। यहां प्रश्न -- जो केवलज्ञान तो अनन्त है। सो अनन्त पदार्थन में अनन्त अर्थ रूप होय प्रवर्ते है और श्रुत ज्ञान संख्यात अक्षरमयी है। सो केवलज्ञान की बरोबर कैसे सम्भयै ? ताका समाधान — जो है माई ! तेरी बात प्रमाण है । परन्तु तू चित्त देय सुनि या प्रश्न का उत्तर धारण किये सम्यक्त्व हो है । हे भव्य ! केवलज्ञानतें कछू छिपा नाहीं । मूर्ति-अमूर्ति पदार्थ सर्व प्रकाशै । ऐसा केवलज्ञान लोकालोक तीन काल का प्रकाशनहारा है। सो जे जे पदार्थ केवलज्ञान में भागा सो सर्व गृहम् केवली के मुखतेंखिरया, सो ही गणधर देव ने प्रगट करि उपदेश दिया। सो मूर्ति-अमूर्ति द्रव्यन का स्वरूप, तीन लोक तीन काल सम्बन्धी रचना, श्रुत-ज्ञान के द्वारा सर्व कही। ताकौ भव्य सुनिसुनि रहस्य पाय, मोक्ष-मार्ग पावते श्रुत ज्ञान केवलज्ञान समान कह्या और भी देखी, हे भव्य ! हो सुनो। जो केवलज्ञान जाकैं होय, सो केवली कहावै है । जाकेँ सर्व श्रुत ज्ञान हो, तो यतीनाथ श्रुत-केवली कहावें हैं । तातें मी केवलज्ञान समान कह्या । ऐसा जानना । इति श्री सुदृष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में सामान्य श्रुतज्ञान वर्णन करनेवाला उगणीसवाँ पर्व सम्पूर्ण भया || १९ || आगे अवधिज्ञान का स्वरूप कहिये है गाथा – देसा पम्म सम्वा तिय भेयावभिणाण जिण भणियं । जाणय मुत्ती दव्बं तोताणागत वत्तमाणाय ॥ ४६ ॥ अर्थ- देशावधि, परमावधि और सर्वावधि - ए तीन भेद अवधिज्ञान, जिनदेव नैं कला है। सो यह ज्ञान अतीत, अनागत और वर्तमान, तीन काल सम्बन्धी मूर्तिक द्रव्यको जानें है। भावार्थ - अवधिज्ञान मूर्तिक पदार्थों कोजा है। सो प्रतीतकाल मैं मूर्तिक पदार्थ जैसे-जैसे परिणमै स्पर्श के विषय रूप, रसना के विषय रूप, नासिका के विषय रूप, नेत्र के विषय रूप, कर्ण के विषय रूप, स्थूल सूक्ष्म रूप, जे-जे पुद्गल स्कन्ध परिणमै । सो सो अपने-अपने विषय प्रमाण सर्व कूं अवधिज्ञान जाने है और आगामी काल में मूर्तिक पदार्थ जैसे परियागे, सो तिन सबकूं अवधिज्ञान जाने है और वर्तमान काल सम्बन्धी जो पदार्थ, तीन लोक मैं जैसे-जैसे २५८ DWEF णी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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