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________________ Na सामान्य स्वरूप कहा। विशेष श्रीगोम्मटसारजी तें जानना । ऐसे पंचलब्धि पूर्ण भए सम्यग्दर्शन होय है। सोता सम्यक्त्व के दश भेद हैं सो हो कहिये हैंगाथा-आग्ण मग उनदेसो, सूतर बीजा संखेय वित्यारो। अत्यायगाव महागादो, समत जिन भास्य य दहमा ॥ ५ ॥ अर्थ-आज्ञा, मार्ग उपदेश, सत्र, बीज, संक्षेप, विस्तार, अर्थ अवगाढ़,परमावगाढ़,रोसे ये दश मेद सम्यक्त्व के हैं। सो अब इनका सामान्य स्वरूप कहिये है । जहाँ विना उपदेश, जिन आज्ञा का दृढ़ सरधान होना सी आझा सम्यक्त्व है। भोरे सरल परिणामी जीव अल्पज्ञान से ही ऐसा सरधान करें हैं कि जो हम अल्पज्ञानी हैं, विशेष तवज्ञान की शक्ति नाही, परन्तु जिन देव नै भाष्या है सो प्रमाण है। ऐसा दृढ़ श्रद्धान करि कुदेव कुशुरुन की। सेवा नहीं करनी सो आज्ञा सम्यक्त्व है।३। जानें गुरु-उपदेश त जान्या है देव, धर्म, गुरु का स्वरूप जी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र ये रत्नत्रय ही हैं। मोक्षमार्ग और विशेषज्ञान तौ नाहीं परन्तु रत्नत्रय विना मोक्षमार्ग नहीं मानें । ऐसा दृढ़ श्रद्धान होय सो मार्ग सम्यक्त्व है । २ । बहुरि जहाँ तीर्थङ्कर चक्रो कामदेवादिक के पुराण सुन, जान्या होय पुण्य पाप का भैद जानें आर तीर्थङ्करादिक के कल्याण आदिक अतिशय सुन उपजी है पुण्य की चाह जाकें रोसा गुरु-उपदेश सनिकै दृढ़ श्रद्धान भाव मया होय, सो उपदेश सम्यक्त्व है।३। बहुरि आचारोगादि सूत्र का उपदेश जानि सम्यक्त्व श्रद्धान दृढ़ भया होय, सो सूत्र सम्यक्त्व कहिये ।४। बहुरि जहा नाना प्रकार गणित शास्वनि का स्वरूप जानि, रहस्य पाय, सम्यक श्रद्धान दृढ़ होय सो बीज सम्यक्त्व कहिये। ५ । बहुरि जहां शास्त्रनि का संक्षेष श्लोक, काव्य, गाथा, छन्द, पद इत्यादिक का सामान्य अर्थ जानिके जापा पर का भेद पाय सम्यक श्रद्धान दृढ़ किया हो सो संक्षेप सम्यक्त्व कहिये।६ । बहुरि अनेक द्वादशांग का स्वरूप सुनि सम्यक् श्रद्धान दृढ़ कर या होय सो विस्तार सम्यक्त्व कहिये । ७। और कोई विना ही गुरुव शास्त्र का उपदेश सुनैं अकस्मात् कोऊ उल्कापात आदिक दृष्टान्त देखि संसार की दशा विनाशीक जानि उदास होई दृढ़ सम्यक्त्व श्रद्धान होय, सोअर्थ सम्यक्त्व कहिये।८। और जहां अङ्गपूर्व के सुनने करि इत्यादिक निमित्त पाय दृढ़ सम्यक्त्व होय सो अवगाढ़ सम्यक्त्व कहिये।।। जहाँ केवलज्ञान भये प्रत्यक्ष सर्वलोक-अलोक भासते रोसा श्रद्धान है सो परमावगाढ़ सम्यक्त्व कहिये ।२०। रोसे कहे जो यह दशभेदरूप सम्यक्त्व परसति सो
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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