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________________ है।७। और आपतें गुणाधिक का विनय, सो विनय च्यारि भेद है। सो ही कहिए है। प्रथम नाम-ज्ञान-विनय, ।। दर्शन-विनय, चारित्र-विनय और उपचार-विनय। इनका सामान्य अर्थ---तहां विनय शास्त्र वाचना, विनयते । । शास्त्र का सुनना और पद, विनतो, पाठ, स्तुति पढ़ना, सो विनय तें तथा शास्त्र लिखना-लिखवाना, सो विनय ते ।। तथा शास्त्र के मनोज्ञानना कति हर्ष माला, पालिका शान-विनष्ट है ' अपने दृढ़ श्रद्धानकू भलीभांति पालना, ता सम्यक कं पच्चीस दोष नहीं लागवे देय। राजा पश्च कुटुम्बादि व्यतिरादि देवन की शङ्का छोड़ि निःश होय अपने जिन-भाषित-तत्त्वनि का श्रद्धान दृढ़ रखना, सो दर्शन-विनय है।२। जहाँ पंच महाव्रत, पंच समिति, तीन गुप्ति---इन तेरह प्रकार चारिन कू विनय सहित पालना तथा इन चारित्रों के धारक मुनोन का विनय सो चारित्र का विनय है तथा चारित्र की तथा चारित्र के धारक की बारम्बार प्रशंसा-स्तुति करना, सो चारित्र-विनय है। ३। जहां यथायोग्य द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव देख सर्व का विनय करना, सो उपचार-विनय है । तहां उपचार विनय के दोय भेद हैं। एक धर्म सम्बन्धी विनय, एक कम सम्बन्धी विनय । जहाँ देव, धर्म, गुरु, तीर्थ, चारित्र, तप और व्रत को पूजा-स्तुति-प्रशंसा करना, सो धर्म-उपचार-विनय है तथा पञ्चपरमेष्ठी सम्मेदशिखरजी आदि सिद्ध क्षेत्र अष्टाहिका आदि शुभकाल सर्व जीव के हितभाव धर्म-शुक्लभाव र सर्व धर्म सम्बन्धी द्रव्य क्षेत्र-काल-भाव हैं । सो इनकी अष्ट द्रव्य से पूजा-स्तुति करनी सो धर्म सम्बन्धी विनय है। राज पंच माता| पिता व्यवहार गुरु जाते लाभ भया होय तथा उम्र करि बड़े तिनका यथायोग्य विनय सो उपचार-विनय है।। मुनि, अणिका, श्रावक, श्राविका—इन च्यारि प्रकार संघ के धर्मात्मा जीवन कुं तनमैं खेद देख तिनके पांव दावना, यतन करना, शुश्रूषा करना, सो वैधावृत्य-तप है।६। स्वाध्याय जो शास्त्र वांचना, प्रश्न करना औरनक || जिन-धर्म का उपदेश करना और बारम्बार तस्वन का विवार सून्या जो गुरु मुखतें उपदेश ताका बारम्बार चिन्तन तथा जिन-आज्ञा प्रमाण श्रद्धानरूप मावन की प्रवृत्ति र पञ्च भेद स्वाध्याय हैं। जहां आत्महित क निराकुल चिन्तन करवे कूतावन का ज्ञान बढ़ाव के कषायन का बल तोरवे क शान्तिरस पीववेक भेद-ज्ञान विचारवे कू स्व-स्वभाव विष मगन होवे क शास्त्राभ्यास करना, सो स्वाध्याय-तय है तथा तत्वन मैं कोई प्रकार सन्देह हो तो ताके मेटवे कं प्रश्न करना तथा अनेकनय का ज्ञान बढ़ावे कौ अनेक युक्ति सहित तत्त्व २१३
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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