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________________ ष्टि तथा अपूर्व मिला होय । तब यतीश्वर परस्पर आपस मैं सुख-दुख परोषहादिक मैं चारित्र की कुशल पूछें। सो मार्ग-संश्रय है। इतिमार्ग- पं सुख-दु-संश्रय जहां कोई महामुनिकों देव मनुष्य पशुकृत महाघोर उपसर्ग हुआ ताकर पीड़ित मुनिकों देखि तिनको साता के निमित्त ओषधि आहार रहने को स्थानादिक देय साता उपजावै, साता भये पै ऐसे वचन कहें विनय सहित धर्म अमृत की धारा बढ़ावते वचन बोले। जो हे यतिनाथ ! हम दुख-सुख मैं तिहारे हैं। इत्यादिक हित-मित वचन का कहना, सो सुख-दुख संश्रय है। 81 आगे सूत्र - संश्रय कहिये है। तहाँ शिष्य ने कीऊ आचार्य के पास अनेक शास्त्रन का अभ्यास किया । श्रुत समुद्र का पारगामी होय बहुत काल पर्यन्त पठन-पाठन किया अनेक शास्त्र गुरु के मुखतें सुनें तिनका रहस्य पाय सुखी भया । पोछे कोऊ और आचार्यन के ज्ञान की महिमा सुनि तिनके शास्त्र सुनिने की इच्छा होय तथा अन्य मत के अनेक षट् मतन सम्बन्धी शास्त्र का रहस्य जानने की इच्छा होय तथा कोई तीर्थ विहार कर की इच्छा होय इत्यादिक अपने उर का रहस्य गुरु के पास कहै। पीछे आचार्य की आज्ञा सहित एक मुनि साथ तथा दोय मुनि साथ तथा अनेक मुनि संघ सहित विहार करें सो सूत्र-संश्रय है । इति सूत्र-संश्रय । ५ । ऐसे दश समाचार मुनीश्वर के विचारवे योग्य हैं, सो कहे ऐसे कहे जी गुरु दश भेद सो यह गुरु जब भगवान के मन्दिर विषै दर्शनको प्रवेश करें, सो कैसे जांय ? सो कहिये हैं। उक्त च "आचारसारणी ।" श्री सु १६५ लोक सर्वव्यासंग निर्मुक्तः, सशुद्धकरणत्रय 1 धोतहस्तपदद्वन्दः परमानन्दमन्दिरम् ॥ १ ॥ चेत्य चैत्यालयादीनां सवनादौ कृतोद्यमः । भवेदनन्तसंसारसन्तानोच्छित्तये यतिः ॥ २ ॥ अर्थ- सर्व संग रहित होए मन-वचन-काय शुद्ध करि दोऊ हाथ, पाँव धोय महाहर्ष सहित चैत्यालय विषै जाय प्रतिमाजी की स्तुति करै सो यति अनन्तभव संसार का छेदन करे है। भावार्थ — जब महामुनि श्री भगवान् के दर्शन चैत्यालय में प्रवेश करें। तब कमण्डलु, पोछी, पुस्तकादि परिग्रह होय सो तिनकों बाह्य स्थान पै, एकान्त उच्च स्थान पै धरिकै आप निःपरिग्रह होय मन-वचन-काय शुद्ध कर अपने दोय हस्त, पांव प्रासुक धो हर्ष सहित परमानन्दित होय ईर्ष्या समिति करि जिन मन्दिर में प्रवेश करें। पीछे भगवान् की स्तुति करिवे का उद्यम करें। विनयतें अनेक स्तवन करें। कैसी है भगवान् की स्तुति अनन्त संसार भवन की मृत्यु १६४ त ₹ गि +
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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