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________________ सु ४ fis १६३ और आगे किये जो गुरु के निकट आतापन योग तथा उपवासादि तप धर्मोपकरण पीछी कमण्डलु पुस्तकादिक तथा महाव्रतादि जो मोक्षमार्ग की साधक क्रिया तिनमें स्वेच्छारूप नहीं प्रवर्ते सारी मुनि-धर्म की साधन हारी जी प्रवृत्ति सो तामैं प्रमाद छोड़ि साहसी होय पापतें भय खाय व्रत का लोभी धर्मात्मा शिष्य गुरु की आज्ञा प्रमाण प्रवर्ते सो इच्छाव्रत समाचार कहिये । ४ । शिष्य गुरु के पासि ताथांदि जानको सीख मांगें तब ऐसे विनय सौं कहै । भो प्रभो ! अब तोई आपके पद-कमल के शरण रहा संयम निधि पाई। अब मेरा मन सिद्ध क्षेत्रादि यात्रा है। सो मोपै दया भाव करि आज्ञा देउ। ऐसे भक्ति सहित विनयपूर्वक विनति करि मौनि करि गुरु के निकट हस्त जोड़ि खड़ा होय रहे । यथायोग्य अन्तरतै तिष्ठे । तब ऐसे वचन आचार्य शिश्य के सुनि दयाभाव शिष्य वै धारि शिष्य के चारित्र को बधवारी ( बढ़नेवारी) की वाच्छातें आचार्य मंगलीक वचन कहैं । भी वत्स 1 है आर्य तेरे व्यन्तरादि उपसर्गत रहित संयम की प्रति पालना होऊ। ऐसे आचार्य शिष्यको मोक्षरूप लक्ष्मी की प्राप्ति व आशीष देय, सो आशीष नामा समाचार है। ५। जे मुनीश्वर जहां जाय तिष्ठ ता जगह ऋषि, देव, मनुष्यादि होय तिनक यतीश्वर ऐसा वचन कहैं। जो हम इहाँ तिहारी आज्ञा सहित तिष्ठे हैं। ऐसा कहिकै विश्राम करें। सो निषधि का समाचार है सो निषधि का तौ मुनि जा स्थानपै गुफा मसान वृक्ष की कोटर मण्डप वसतिका इत्यादिक स्थानकन के देव मनुष्यादिक की आज्ञा सहित तिष्ठ, सो निषधि का समाचार जानना |६| ऊपर कहा जो आशीष समाचार कहां करें, सो कहिये है — मुनीश्वर जहां तिष्ठे थे तो स्थानक तण अन्य स्थान जाय तब जातें यतीश्वर तहां के रक्षक देवादिक कूं ऐसे हित-मित वचन कहैं। जो हम तिहारे स्थान रहे, सो अब हम चलें हैं। ऐसे प्रिय वचन कहि गमन करें, सो आशीष कहिये और अपृच्छनी समाचार साताका अर्थ मूल ग्रन्थ आचारसारजी तैं जानना । ७ । यति को अपना लौंच करना होय तथा नवीन ग्रन्थ जोड़ विषै प्रारम्भ करना होय तथा कोई अपूर्व ग्रन्थ वोचना होय तथा नगर मैं भोजनकों जाना होय तथा इन कोक महान कार्य करना होय, तो आचार्यपं आय विनय सहित हस्त जोड़, मस्तक नमाय, गुरुपै आज्ञा याचे । सो जैसी गुरु का आज्ञा होय, ताही प्रमाण करें। सो प्रति प्रच्छिन्न समाचार कहिये। ८। और जब काहू मुनि पुस्तक चाहै, सो अपने गुरु पास होय तौ गुरु की आज्ञा सहित सेथ तथा अपने गुरुपै नाहीं होय १६३ स रं ग्रि णी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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