SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1३५७ मावके तीनि मैदनिका कथन है ।१५८। तीनभेद भव्यके हैं।१५६ तीन भेद अंगुलीके हैं।२६०। उगणीस | (१६) भेद माषके प्रमाणके हैं।२६शतीन भेद अक्षरके हैं।२६२। तीनि भेद लिये पर्याप्पिन का स्वरूप है ।२६३ ।। चक्षुदर्शनके दोय भेद हैं । १६४। दोय भेद उपशम सम्यक्त्वके हैं । १६५। योगस्थानके तीन भेद हैं । २६६ । तीन भेद धर्म त अरुचि होनेके हैं। १६७। मिध्यात्वपोषित शल्यके भेद तीन हैं। १६८। आगे च्यारि नितेपनिका कथन है । १६६। अलौकिक मान चारप्रकार हैं। १७० । अर्जिका चार गुण हैं । १७२। दत्ति (दान) के चार भेद हैं।२७२। कुलकरनिकें बारह चुक भये दंड होय, ताके भेद चारि हैं।२७३। हिंसा कोई प्रकार पुण्ध नाही दृष्टान्तकरि बतावता कथन है ।२७४। अनेक दृष्टान्तनिसे दयामैं पुण्य बतावता कथन है ।२७५॥ राजानिमें ऐसे गुण होय तो तिनको प्रजा सूखी होय, राज तेज बढे यश प्रगटै, परभव सुधरै, तातै राजनिमें ऐसे गुण।। अवश्य चाहिये ११७६। चौदह विद्या राजपुत्रिनके सीखने योग्य हैं ।२७७] चौदह विद्या लौकिकी हैं। १७८।। चक्रवर्तीके पुण्य योगतै नस निधि चौदह रत हैं । १७ ! नौशेकालके भाति प्रजाके सूखनिमित्त भरत चक्रीने षट् कर्म बताये । १८०। भरतचक्रीक तिनका फल आदिनाथ स्वामीने कहाकि अभी नाही, पंचम काल | आये आगे प्रकट होयगा । १८११ चक्रवर्तीकी सेना षट् प्रकार है। १८२। शुद्ध भगवानको परीक्षाके मुख्य तीन गुण हैं ।१३। जबै तीर्थकर गर्भ वि अवतर तवे पहिले माताको सोलह स्वप्ने होय तिनके नाम फलका कथन है। १८४ । तीर्थकरादि महान पुरुषनके चिन्ह षट गुण है जे इन षट गुरा सहित होंय सो पुण्याधिकारी जानिये । १८५। आभषणनिमें हार मुख्य है सो हारके ग्यारह भेद हैं ताका कथन है। १८६। आदिनाथ स्वामी के कैलाशपर्वतत निर्वाण जाने विर्षे चौदह दिन बाकी रहे तब आठ पुरुषनिको आठ स्वप्ने भये ११८७ । नायक नाम बड़े का है तिस नायकके तीन भेद हैं। १९८ श्रावकका धर्म ग्यारह प्रतिमा तिनमें पंच उदम्बर व तीन मकार का त्याग करने वाला अष्ट मूलगुण धारी है। तिन मूल गुणिके अतीचारनिमें सात व्यसनके अतीचारका | कथन है। तामैं मांसके अतीचार स्वरूप बाईस अभक्ष्यका कथन है । १८६ । दुसरी प्रतिमामें पंच अणुब्रत तीन गुणब्रत, च्यारी शिक्षाबत बारह ब्रतनिका व इनके अतिचारका तथा दश प्रकार परिग्रहनिका कथन है नवधा भक्ति अरु दातारके सात गुणनिका जर अधाकर्म भोजनके चार भैदनिका अरु चारि प्रकारि दानका अरु सल्लेखना
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy