SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ || हैं, केई मध्यम हैं, केई हीन हैं, झूठे हैं। तैसे ही जीव भी पर्याय सत गुगत जुदे भिन्न-भिन्न हैं, केई सिद्ध हैं, केई संसारी हैं। तामें भी कई भव्य हैं, केई अभव्य हैं। ऐसे अपने कर्म उपार्जन प्रमाण फलरूप हैं १४८ और जीव द्रव्य अपेक्षा अनादि है। पर्याय अपेक्षा सादि हैं । इत्यादि अनेक उत्तर करते भए। ऐसा कथन जामें चले सो व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग है। याके २,२८,००० पद हैं जहां समोशरण कथन तथा दिव्य-ध्वनि खिरवे का कथन तथा तीर्थङ्करन के अतिशयन का कथन इत्यादिक कथन जामैं होय सो ज्ञातृ-कथा छठा || अंग है 1 याके पांच लाख छप्पन हजार पद हैं। ६ । आगे श्रावक आचार ग्यारह प्रतिमादि जामैं श्रावकको धर्म कर्म रूप कैसे प्रवर्तना इत्यादिक कथन जामैं होय सो उपासकाध्ययन सातवां अंग है । याके १२ लाख सत्तर हजार पद हैं ।७४ एक-एक तीर्थङ्कर के समय में दश-दश मुनीश्वरों ने आयु के जन्त समय केवलज्ञान पाया तिनकू अन्तकृत केवली कहिए। तिनका कथन जहां चले सो अन्तकृत दशांग है थाके २३,२८००० पद है।दा एक-एक तय कर के समय में दश-दश मुनीश्वर पति उपसर्ग सहकै महमिन्द्र भए। तिनका कधन जहाँ चलें सो अनुत्तरोपपाददशांग है। याके १२,४४००० पद हैं। जहां होनहार त्रिकाल सम्बन्धी होय सो बतावें । मुठी वस्तु राखि पूछे तो बतायें। इत्यादिक जो प्रश्न करे सो ही बतावै याका नाम प्रश्रव्याकरण अंग है । याके १२.२६,००० पद हैं ।२०। जहां कर्म का उदय भया तब शुभाशुभ रस जिस-जिस ! तरह जीव ने उपार्जे अरु वे जिस-जिस तरह उदय होय । ऐसा कथन जामैं होय सो विषाकसूत्र नामा अंग है। याके १८४,००००० पद हैं ।३। रोसै ग्यारह अंग का ज्ञान उपाध्यायजीकू होय और चौदह पूर्व का स्वरुप नाम लिखिये है। तहाँ उत्पाद पूर्व, अग्रायणी पूर्व, वीर्यानुवाद, अस्तिनास्ति, ज्ञानप्रवाद, सत्यप्रवाद, आत्मप्रवाद, कर्मप्रवाद, प्रत्याख्यान, विद्यानुवादपूर्व, कल्याणप्रवाद, प्राणवाद, क्रियाविशालपूर्व, त्रिलोक-त बिन्दुपूर्व–रा चौदह पूर्व के नाम हैं । अब इनका अर्थ-ताका रहस्य लेय सामान्य अर्थ दिखाईए है । तहां । व्यय ध्रुव उत्पाद का लक्षणकौं लिए षट् द्रव्यादि वस्तुन का परिणमत है। जहां इन व्यय ध्रुव उत्पाद का लक्षण होय, सो उत्पाद पूर्व है। याके एक कोड़ि पद हैं। जहां वस्तु कहा, पदार्थ कहा. द्रव्य कहा. सुनय कहा, कुनय कहा इत्यादिक व्याख्यान जामैं होय सो आग्रायसी पूर्व है। याके छयानवै लाख पद हैं। जामैं वीर्य का द
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy