SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ स्थावरन की हिंसा घटै और अग्नि का बारना, कहिके जलवाना, छोवना, दावना, प्रगट करना, दीपक करना, करावना, याकी प्रभा मैं तिष्ठना इत्यादिक अग्रि के आरम्भ छटै है और पवन पंखेलेना, कपड़ा हलावना, कूदना, हाथन से तारी बजावना, फूकें देना, वस्तु पटकना इत्यादि पवन घात के कार्य छूटे तब पवन कायकन की हिंसा छूटै और पृथ्वी का खुदावना, खोदना, झाड़ना, छोवना, फोड़ना, फड़ावना इत्यादिक पृथ्वी काय के कार्य छुटैं। तब पृथ्वी एकेन्द्रिय की हिंसा छुटे है। इत्यादि पंच स्थावरन की हिंसा कही। विकलत्रय की हिंसा तब टरै। जब जतनत चलै, जतनत बैठे, जतन सोवे, जतातें बोलें, जतनतै खाय, जतनतें वस्तु धरती पै धरै. जतनतें उठावै, खाजि चलै तौ नहीं सुजावै, अन्न मेवा जे वस्तु खावे योग्य होय सो खाय जयोग्य नहीं खाय । अन्न, तेल, घी मेवादिक किरानादिक वस्तु नहीं बैचे, नहीं लेय इत्यादिक जे कार्य एकेन्द्रिय के बारम्भ घात निमित्त बहुत हैं। तातें जो इनकी रक्षा रूप वर्तना सो उत्तम क्षमा जानना। सीए कहे जेते कार्य सी सर्व ही सर्व प्रकार यति महाव्रती के पाले हैं । गृहस्थ के नाही तात याका नाम उत्तम क्षमा कह्या है ।श और अष्ट प्रकार मद का त्याग सो मार्दव-धर्म है। २ । और भावन मैं दगावाजी का त्याग और बाह्याभ्यन्तर एक-सी मन काय को क्रिया सरल भाव कुटिलता रहित परिणाम सो जार्जव-धर्म है।३। और मन-वचन-कायकर असत्य का त्याग जिन-अाझा प्रमाण हित-मित बोलना सौ सत्य-धर्म है। ता सत्य वचन के दश भेद हैं सी कहिर है गाथा—जणवद संवदिठवणा, णाम सत्तोय सो पत्तोतो। ववहारण संभावण, भावउपमाए सत्यदह मेवो ॥ २९ ॥ अर्थ-जनपद-सत्य, संवृत्ति-सत्य, स्थापना-सत्य, नाम-सत्य, रूप-सत्य, प्रतीत-सत्य, व्यवहार-सत्य, संभावनासत्य, भाव-सत्य, उपमा-सत्य-पदश। इनका अर्थ-तहां जिस देश विर्षे जिस वस्तु का जो नाम होय ताको तैसेही कहना जैसे—कर्नाटक देश में उड़दन का नाम भूतिया कहै हैं । सो वह देश प्रमाण है । याका नाम जनपदसत्य कहिय।शबहुरि जाको वहु जीव मानें ताकौ तैसा हो कहिए । जैसे—काह निर्धन पुरुष का नाम लक्ष्मीधर हैं। ताकी सर्व देश नगर के लोक लक्ष्मीधर ही कहैं हैं। याका नाम संवृत्ति-सत्य है । २ । और जहां काहू राजा की छवि काहने काष्ठ पाषाण चित्राम की करी है। सो वा छवि के राजा कहना जो यह फलाने राजा की छवि है ऐसा कहना याका नाम स्थापना-सत्य है।३। जिसका नाम लोक में प्रसिद्ध होय तिस वस्तुक ताही नाम
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy