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________________ श्री सु के जाय है। सो कहीं क्षुधा परिषह रूपी घाटी आवे है तहां महाउदासीन व्रत का धारी अपनी साहस वृत्ति कर क्षुधा परोषहक जीते सो क्षुधा परिषह विजयी साधु कहिए श तह! जे गुरु नाना तप, उपवास, दुर्धर करते ज्येष्ठ मास के दीर्घघामनि का निमित्त पाय भई जो तन विर्षे तपन को ज्वाला, अरु रोसी ऋतु मैं भोजनकौं नगर मैं गए, तहाँ प्रकृति विरोधी दाहकारी भोजन का निमित्त मिल्या तथा मासोपवासोको नगर में अन्तस्य भई। ताके निमित्त ते बधी (बढ़ी) जो तन मैं तृषा को वेदना, ताके निमित्त पाय सर्व शरीर अग्निवत् तपि चला, नेत्रनके आगे तमारे आवनें लगे, तारागन-सी (चिनगारी-सी) नेत्र पै टूटने लगी, लोचन फिरने लगे इत्यादिक मई जो तृषा की बाधा, ताकी सहते धीर साधु वीतरागो मुनि खेद भाव नाहीं करें। ताकू तृषा परीषह विजयी साधु कहिए।२। तहां राज अवस्था में शीत की बाधा मेटवेंकी अनेक उपाय करते अग्नि, रुई, रोम शाल-दुशाले, रजाई कोमल स्त्री के तन का उठण स्पर्श अनेक गर्म मैवा भोजन और औषधादिक रस भोगना और अनेक महलन के गर्भनके अन्दर सोना इत्यादि गृहस्थ अवस्था मैं तन के जतन करते सो अब यतिपद विर्षे नदीतट, चौपट वन इत्यादिक शीत के स्थान तिनमैं तिष्ठतें योगीश्वर समता रस पीवते, ध्यान अग्नि की महिमा विौं तपते, शीत की बाधा नहीं गिने, सो शीत परीषह विजयी साधु कहिये । बहुरि समता रस अमृत के स्वादो यतीश्वर, तप कर भया है जो तन शोरा ताकरि तन की शोभा अरु ज्ञान शोभा प्रगट करी ऐसे तपज्ञान भण्डार यति, चैत्र, वैशास्त्र, ज्येष्ठ इन मासन के धामनि करि सुखि गए हैं नदी सरोवर के नीर, अरु वन के वृक्षन के पत्ता अरु कूप बावड़ीन के जल नीचे बैठि गए और पृथ्वी, पर्वत, अग्निवत् तप चले। वन बाग शोभा रहित होय गये। ऐसे दुर्धर (घोर) || धामन मैं जनेक वनचर जीव अपने-अपने स्थानन में गमन तजि तिष्ठ रहे। केईक पश वृक्षन की छाया में तिष्ठ रहे हैं। मार्ग चलनहारे पंधीजन मनुष्य, सो भी मार्ग तजि बैठि रहे हैं। ऐसे घामन विर्षे योगीश्वर, पर्वतन के शिखरन , शिलान 4 समता सुधारस पोषने हारे। सुखत अडोलशरीर करि तिष्ठते, नहीं है परिगति मैं खेद जिनके ऐसे यतीश्वर सी उष्ण परीषह विजयी साधु कहिए। ४ । वर्षाकाल वि वर्षा का निमित्त पाय, वृक्षन ! के नीचे डांस, मशक, बिच्छु, कानखजूरे आदिक दुःख के उपजावनहारे जीव, मुनि के तनकू उपद्रव करें है। | तिन यतीन कै तनकौ काटे हैं। तनकें लिपटें हैं। तिन बाधा के आगे, जगत् का पीर हर दया भण्डार तनकों १३८
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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