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________________ १३० दान देय तौ दाताको दोष लागे। याका नाम क्रीत-दोष है। ह। अपनी शक्ति तौ नाहीं परन्तु पराया कर्ज लेय मुनिकों भोजन देव तौ तादाकू दोष लागे, याका नाम प्रामित्य-दोष है। १०। अपने घर में होन अन्न था जो जवारि कोद, सो तिन बदलाय तन्दुल गेहूं लाय मुनिकों दान देय, तौ दाताकौं दोष लागै, याका नाम परिवतित [परावर्त] दोष है। १२ । अन्य गृह, अन्य ग्राम, स्वदेश व अन्य देश से आये हुए भोजन को, दाता मुनि को पड़गाह करके देय. तो दोष लागे। ताका नाम अभिवट (अमिहत) दोष है और यतिको पड़गाह लाये, कोई वस्तु किसी पात्रमैं थो ताका मुख बंधा था ताका मुख खोलि, मुनिकों दान देय, तौ दाताकौं दोष लागे। याका नाम उद्धिन-दोष है। १३ । और मुनि आए पीछे कोई वस्तु ऊपरले खण्ड है ताकू, लाय मुनिकों भोजन देय तौ दाताको दोष लागै, याका नाम मालारोहरण-दोष है। ३४। और श्रावक कू तो मुनि-दान देव की वोच्छा नाही. परिणामन मैं भक्ति नाहीं। परन्तु राजा, पंच, नगर के लोक धर्मात्मा है, सो राजपंच के भय करि लोक दिखावने कं मुनिको दान देय, तौ दाताको दोष लागै। याका नाम आच्छेद-दोष है।१५। अनिसृष्ट (निषिद्ध) दोष दो प्रकार है। एक ईश्वर दुसरा अनिश्वर । तहाँ घर का मालिक तो होय परन्तु मन्त्री आदि के | आधीन होय, सो सारक्ष ईश्वर है और जो मन्त्री आदि के आधीन न हो सो असारक्ष ईश्वर है और जो मन्त्री आदि के अधीन न होकर उनसे सलाह लेकर कार्य करता है, सो सारसासारक्ष ईश्वर है। इस प्रकार के ईश्वर | से प्रतिषिद्ध आहार को देना, सो ईश्वर-निषिद्ध-दोष है। जाका घर-धनी तौ नाहीं और ही आय दान देय, तौ दाताको दोष लागै। याका नाम अनीश्वर-निषिद्ध-दोष है ।१६। इनका जतन दाता करे। यह उद्गम दोष कहे। भागे सोलह उत्पादन दोष हैं । सो पात्र के आधीन हैं। सोही कहिये हैं। तर्हा मुनीश्वर दाता के घर भोजनकों जाय ताके बालकन कंधाय की नाई रमा। सिंगारादि करावें। तौ यतिको दोष लागै। याका नाम धात्री-दोष है।। यतीश्वर भोजनकौं दाता के घर जायकै ताको सम्बन्धी व दूरदेश के समाचार कहे तो पात्रकों दोष लागै। याका नाम दूत-दोष है। २। मुनीश्वर दाताकू निमित्तज्ञानादि अतिशय बताय भोजन करें तो यतीश्वर कों दोष लागे, याका नाम निमित्त-दोष है।३। मुनीश्वर दाता के घर जाय आजीविका की बात कहैं जो आज काल भोजन का निमित्त अल्प है इत्यादिक कहि भोजन करें तो मुनीश्वरकों दोष लागे। याका नाम जाणीव FEE
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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