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________________ सु ष्टि संक्षेप में तीन लोकका कथन है । तिनमैं मध्यलोकके कथनमें असंख्यात द्वीप समुद्रनिमें आदिके षोड़स अन्त के | षोड़स द्वीपनिके नाम हैं। और तहां ही बढ़ाई द्वीप संबंधी ध्रुबतारनिका प्रमाण कथन है ॥ ३६ ॥ आगे मध्यलोक • विषै चारि सौ अठावण अकृत्रिम जिन मन्दिर हैं, तिनके स्थाननिका वर्णन है । ३७। बहुरि स्वर्गलोकके कथन में आठ युगलानिके सोलह स्वर्गनके नाम, तिन संबंधी देवनिको आयु अरु कायकै प्रमाणका कथन है ॥ अरु युगलनि प्रति इन्द्रनिका प्रमाण अरु युगल प्रति विमानकी संख्याका कथन है। और धरती तें केते केते ऊँचे हैं । तिनके प्रमाणका कथन है । विमाननि के वनका कथन है। स्वर्गनिके आधारनिका अरु स्वर्ग प्रति कामसेवनका, देवनिके मरन पीछे उस ही स्थानमें देव उपजनैका अन्तर और युगलनप्रति देवनकी अवधि विक्रियाका देवनि श्वासोच्छ्वासके अन्तरका प्रमाण, मुकुटनिके चिन्हनिका, विमाननकी मोटाईंका और स्वर्गप्रति श्या अरु देवांगनाकी उत्पत्ति, देवनीको आयु, ऐसे सामान्य ऊर्ध्वलोकका कथन है । इत्यादिक त्रिलोकबिंदु पूर्व विषै इन आदि, ग्यारह अंग चौदह पूर्वका ज्ञान सहित उपाध्यायजीके गुणनका कान है । ३८ । आचारसारजी अनुसार मुनीश्वरोंके विचारयेके समाचार दश हैं। आश्रय पांच हैं | ३६ | धर्मके कथन विषै पहले कुधर्मका कथन है । ४० । बहुरि सुधर्मका । ४२ । आगे नव नयका कथन है । ४२ । आगे धर्मकी परीक्षाको पंचप्रमाण हैं । ४३ । कुसंग त्यागका । ४४ । सुसंगका । ४५ । कौन कौन ध्यान चिन्तवन करने योग्य हैं। कौन कौन नहीं करिए ? औ श्रार्त्त रौद्र ध्यान, नहीं करिये। अरु धर्म्य शुक्ल ध्यान करने योग्य है । ४६ । आर्त्तके चिन्हनका । ४७ सुआचार कुआाचारका कथन है । ४८ । योग्य अयोग्य खानपानका | ।। ४६ । शुभ अशुभ वचन भेदका । ५० । असत्यके ग्यारह भेदनका । ५१ । परस्पर बिना प्रयोजन बतलावना सो विकथा है । ताके पचीस भेदनका । ५२ । द्रव्य क्षेत्र काल भावके कथन विषै स्वद्रव्य क्षेत्र काल भाव तथा परद्रव्य क्षेत्र काल भावका कथन है। तहां स्वद्रव्यकी परीक्षाका कथन है । और द्रव्यनके प्रमाण मनुष्य - Y द्रव्य थोरा है। क्षेत्र उपेक्षा मनुष्यका क्षेत्र धोरा है और काल अपेक्षा मनुष्यका काल थोरा है। और भाव अपेक्षा मनुष्य के उपजने का भाव थोरा है । । ५३ । षट्कायके जीवनको आयु, कायका कथन है । ५४ । एकेन्द्रिय तिर्यञ्चन मैं सूक्ष्मवादर है । ५५ । षट् कायके शरीरनके आकारका कथन है । ५६ । ष्ट्र काय जीव केती केली ४ 1 रं WEB गि णो
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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