________________
९४ ]
सोलहकारण धर्म ।
7
छठवां उपाय - जैनियोंकी ओरसे सर्वसाधारणके हितार्थ उदारतापूर्वक जैन धर्मशालायें, श्राश्राश्रम, अमायालय, विद्यालय, उद्योगशाला, गुरुकुल, ब्रह्मचर्याश्रम, पुत्रीशालायें, गौशाला, 'पांजरापोल आदि जीवदया प्रचारक संस्थायें खोली जाय और समान प्रकारसे सबको लाभ पहुंचाया जाय । प्रत्येक संस्थाम कुछ समय धर्मशिक्षाका आवश्यक रीतिसे नियत रहे, और सुयोग्य विद्वानों द्वारा शिक्षा दिलाई जाय । इस प्रकार चतुविधि दानकी प्रवृत्ति की जाय ।
सातवां उपाय - कुछ तीक्ष्ण बुद्धि विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां देकर बड़े बड़े विद्यालयोंमें, कारखानोंमें तथा विदेशों में भेजकर विद्वान किये जांय, ताकि वे काम सीखकर आयें और अपनी अनुभवित विद्या और बुद्धि द्वारा समस्त देशवासियों को लाभ पहुंचायें जिससे हिंसक लोगों द्वारा बनाया जानेवाला विदेशी माल, तथा हिंसा करके तैयार किया गया विदेशी माल हमारे देश में आनेसे रुके ।
जैसे परदेशी व विदेशी अशुद्ध खांड और अशुद्ध दवाइयां आदि । और इनके बदले अपने देशकी की बुनी ( हाथकी ) शुद्ध खादी, वलिया बनारस वक्सर आदिकी शुद्ध खांड व स्वदेशी शुद्ध प्रासुक औषधियां ही उपयोग में लाई जाव और हिसाकी माता- इन मिलोंके बने चर्बीसे सने सूती व रेशमी ( जोकि चौइन्द्री असंख्यात कीडोंको मारकर ही बनता है ) के वस्त्र पहिरना सर्वथा रुक जाय । इससे मुख्य बात तो यह होगी कि हिंसा बंद होगी और दूसरी बात यह होगी कि देशके धनको रक्षा होगी, गरीबोंकी आजीविका चलेगी । हिंसकों की आय कम होनेसे करोड़ों निर्दोष गाय, भैंसे बकरे आदि पशु न मारे जायगे, घी दूष आदि खानेको मिलेगा, सुखसे खेती