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________________ a सोलहकारण धर्म । प्रकारको स्वपर भेद विज्ञानरूप अवस्थाको सम्यादर्शन या सम्यक्त्वकी अवस्था कहते हैं । । यहां वह जीव चतुर्थ गुणस्थानवर्ती कहाता है, उस समय उसके मोहकर्मकी सात प्रकृतियों ( अनन्तानुबन्धी क्रोष, मान, | माया और लोभ ये चौकडी चारित्रमोहकी, और मिथ्यात्व, सम्याग्मिथ्यात्व और सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व ये तीन दर्शनमोहको ) का क्षय तो कर हो चुका है। पश्चात् अप्रत्याख्यानावरणी और प्रत्याख्यानावरणी क्रोध, मान, माना और सोभ इन नारिमोड़की दोनों चोकड़ियोंके उपशम होनेसे उपशम या क्षयोपशम चारित्रको प्राप्त कर अनिवृत्ति बादरसाम्पराय नाम नवमें गुणस्थानमें निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि ये तीन दर्शनावरणीय कर्मकी और तर्कगति, पशुगति, नर्कगत्यानुपूर्वो, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, एकेन्द्री, द्वन्द्री, रेन्द्री, चौइन्द्री, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण, ये तेरह नामकर्मको इस प्रकार सोलह प्रकृतियोंका क्षय करके तिसहोके पीछे उसा गुणस्थानमें अप्रत्याख्यानावरपोय और प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभको पौकड़ियां अर्थात् आठों चारित्रमोहकी प्रकृतियोंको क्षयकर कमसे नपुसकवेद, स्त्रीवेद हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, संज्वलन, क्रोध, मान. माया ये तीन. इस प्रकार वीस चारित्र मोहको और तेरह नामकर्मकी और तीन दर्शनावरणीयकी, कुल असीस प्रकृतियोंको क्षय करके क्षपकक्षणोमें ही आरूढ़ होता हुआ दशवें सूक्ष्मसापराय नाम गुणस्थानमें सूक्ष्म लोभ ( चारित्र मोहकी संज्वलन चौकड़ों में से जो
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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