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________________ सोलहकारण धर्म ! [ xs होगा, इसलिये समताभाष ही धारण करना उचित है । कर्म | उनको मैंने ही किये हैं तब काफिल भी मुझे ही भोगना पड़ेगा और जब शुभ कर्म भी स्थिर नहीं रहता है, अशुभ कर्म, किस प्रकार स्थिर रह सषेगा ? इसलिये इस विनायक धर्मकं उदयजनित फलमें कायर होना भूलभरा हुवा है, व्यर्थ है । इत्यादि चितवनकर और मित्र महल, स्मशान, कांच कचन, सुख दुःखादिमें समभाव धारण कर चारों आराधनाओंको धारणकर मरण करे सो समाधिमरण या साधु, समाधि है। इस प्रकार सासमाधि भावनाका वर्णन किया । ऐसा कहा भी है P . साधु समाधि कर करो भावुक, पुण्य बड़ो उपजे अध भाजे साधुकी संगति धर्म के कारण भक्ति करे परमारथ छाजे ॥. साधु समाधि करे भव छूटत कीर्ति घटा श्रयलोक में गाजे ज्ञान कहे जग साधु बड़े, गिरिश्रग गुफा विश्व जाय बिराजे |2 इति साधुसमाधिभावना | व (९) वैयावृत्यकरण भावना । वैयावृत्य - अर्थात् सेवा करना 1 सेवा करनेका मुख्योद्देश. यह है कि जिससे कोई भी प्राणी रोगादिक अस्वस्थता के कारण कायर होकर आत्मघात न करले, तीव्र कषायोंके द्वारा कुमरण
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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