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________________ सोसहकारण धर्म । अनशन-अर्थात् लौकिक सत्कार ख्यातिलाभ पूजादिकी 'इच्छाके विना संयमकी सिद्धिके लिये, बा रागादि भावोंके उच्छेद करनेके लिये, वा कर्मोके नाश करने लिए वा ध्यान स्वाध्यायकी सिद्धिके लिए वा इंद्रियोंको विषयोंसे रोकने ( दमन करने) के लिये, प्रमादादि कषायोंको जीतने के लिये भोजन-पानका त्याग करना सो अनशन नामका तप है। कनोदर--उक्त प्रयोजनके ही सिद्धयर्थ अल्प भोजनपान करना। वृत्तिपरिसंख्यान – अपनी शक्ति बढ़ाने तथा स्वशक्तिकी परीक्षा करनेके लिये अपने शरीरको शक्ति देखकर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावानुसार किसी प्रकारके विशेष नियमोंको मनमें धारण करके कि एक, दो या पांच, सात इत्यादि घरों तक ही जाऊंगा, या एक दो या अमुक टोला (फलिया तक जाऊंगा ), या रास्ते या मैदान में ही भोजन मिलने पर लुगा, इत्यादि तक भोजनको गमन करना और यदि नियमानुकल विधिसे भोजनलाभ न हुआ तो बिना किसी प्रकारका खेद किये ही पीछे वन में उपवासादि धारण कर लेना । रसपरित्याग-संयमकी वृद्धि और इन्द्रियलोलुपताके घटाने के लिये खट्टा, मीठा, कडुवा, कसैला, तीखा आदि अथवा गोरस, फलरस धान्यरस, अथवा घी, दूध, मिष्टान, तैल. दही और लवणादि रसोंका अथवा इनमेंसे किसीका त्याग करके भोजन करना। विविक्त शय्यासन-वन, गुफा, पर्वत, वस्तिका तथा जिना. लय आदि एकान्त स्थानमें जहां ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, ध्यान, अध्ययन इत्यादिमें कोई भी विघ्न आनेकी संभावना न हो, यहां शयन व आसन करना ।
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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