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सोलहकारण । थी। भगवान नेमिनाथ स्वामी राजुलसो भन्द्रमुखी मृगनयनी सीका त्याग करके गिरनार पर ध्यानस्थ हुए थे। भगवान महावारने बाल्यावस्थामें हो इसे जीतकर संसारको कल्याणमागे दिखाया था । स्वामी पार्श्वनाथने मो इसे बाल्यावस्थाम ही निर्बल करके मोक्षमार्ग ग्रहण किया था। नारीभूषण ब्राझी और सुन्दरी कुमारियोने तथा अनन्तमती, सेठकी कन्यानं कुमारी अवस्था हो व्रत लिया था। इसके सिवाय और भी महावली जितने नरनारी पृथ्वी पर हुए हैं यह सब ब्रह्मचर्यका ही प्रताप था।
ब्रह्मचर्यके बिना जैसे ज्ञानप्राप्ति नहीं होती, ऐहिक सुख भी वंसे हो नहीं मिल सकता, और उसी प्रकार व्रत, संयम, नियम. धर्म दान, पूजा, स्वाध्याय, ज्यान इत्यादि कुछ भी नहीं हो सकता है। क्योंकि ब्रह्मचर्य विना निर्बलता होती है, निर्बलतासे अनुस्साहता बढ़ती है, अरुचि होती जाती है, अस्थिरता बनी रहती है, कायरता, घेरे रहती है । इसलिये चित्त कमी एकान नहीं होता है।
भगवान उमास्वामीने कहा हैउसमसंहननस्यकाग्रचिंसानिरोघो ध्यानम् अन्तर्मुहर्तात् ।
(सत्वार्थसूत्र ३० ९ सू० २७) अर्थ--उत्सम अर्थात् वनवृषभनाराच संहननवाले पुरुषोंक भी एकाग्रचिताको रोकनेरूप ध्यान अन्तर्मुहूर्त । ४८ मिनट तक ) ही स्थिर रहता है । __सो मला जब ऐसे महाबली ही अपने ध्यानको ४८ मिनट तक स्थिर रख सकते हैं, तो वे ब्रह्मचर्य भ्रष्ट निबल पुरुष