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सोलहकारण धर्म यह सुनकर षी गौतमस्वामी बोले-राजा तुम्हारा यह प्रश्न समयोचित और उत्तम है इसलिये ध्यान लगाकर सुनो। इस यतको कया व विधि इस प्रकार है--
पोरस कारण भावना, जो भाई चित धार । कर तिन पदकी वंदना, कहूं कथा सुखकार ॥१॥
जम्बूदीपमें भरतक्षेत्रके मगध (बिहार) प्रान्तमें राजगृही नगर है। वहांका राजा हेमप्रभ और रानी विज्यावती थी। इस राजाके यहाँ महाशर्मा नामका नौकर था और उसकी श्रीका नाम प्रियंवदा पा । इस प्रियंवदाके गर्भसे कालभैरवी नामकी अत्यन्त कुरूपा कन्या उत्पन्न हुई जिसे देखकर मातापितादि सभी जनोंको घृणा होती थी।
फिर एक दिन मतिसागर नामके पारणमुनि आकासमागसे गमन करते हुए इस नगरमें पधारे तो वह महाशर्मा अत्यन्त भक्ति सहित श्री मुनिको पड़गाहकर विधिपूर्वक आहार देकर, मुनोराज द्वारा धर्मोपदेषा सुनने लगा पश्चात् जुगल कर जोड़कर विनययुक्त हो पूछा-हे नाप ! यह मेरी कालभैरवी नामकी कन्या किस कर्मके उदयसे ऐसी कुरूपा और कुलमणी उत्पन्न हई है, कृपा कर कहिये । तब भी मुनिराज (अवधिज्ञानके षारी) कहने लगे, मत्स ! सुनो--
उजनी नगरीमें महीपाल नामका राजा और उसकी वेगावती नामकी रानी पी। इस रानीसे विशालासी नामकी एक कन्या थी । यह कन्या बहत रूपवान होने के कारण बहुत अभिमानिनी हुई और इसी रूपके मदमें उसने एक भी सद्गुण न सीखा । यथार्थ है, अहंकारी मानी ) को विद्या नहीं माती है।