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________________ 1 . १.२] सोलहकारण धर्म । प्रन्थकर्ताको भावना । सम्यग्दर्श विशुद्धि, विनय सम्पन्न, सुशीलविना अतिचारे । ऽभीक्षण ज्ञान उपयोग घरे, संवेग सुशक्तिस्त्याग तपारे । साधु समाधि सुधार वैयावृत अरहत सूर सुभक्ति उचारे । बहुश्रुत प्रवचन भक्ति धरे समतादिक घट आवश्य सम्हारे॥१॥ मार्ग प्रभावन कारण आगम, जैन करे उपदेश प्रचारे । भूतव्रती जन देख खुशी है, बालक गौबत वत्सल घारे ॥ यही सोलह भावन भाय, भये है हैं तीर्थंकर सारे । 'दीप' कहे दिन धन्य वहे जब, भावना भाय लहूं भव पारे ।।२।। यदि आषाद तिथि मागंणा, संवत् कोर जिनेश । तीर्थकर हन घातिया, कियो घर्म उपदेश ।।१।। लेख पूर्ण तादिन कियो निज परको हितकार। षोडसकारण भाव यह, दीपचन्द परवार ।।२।। इति षोडशभावना कथन संक्षेपत: सम्पूर्णम् । षोडशकारणके सवैये । (१) दर्शनविशुद्धि । दर्शनशुद्धि न होवत ज्योलग, त्योलग जीव मिथ्यात कहावे ।। काल अनंत फिरे भवमें महा, दुःखनको कही पार न पाये । दोष पचीस रहित गुणाम्मुधि, सम्यग्दर्शन शुद्ध ठरावे । भान कहे नर सोहि बडो जो मिथ्यावसजी जिन मारग ध्यावे ॥१॥
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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