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________________ ससोपधान पद ४, संपदा १, गुरु ५, लघु २४, कुल २९ । उपधान अर्थ-सिद्धि पाये हुए. बोध पाये हुए तथा संसारसमुद्रके पारको पाये हुए, गुणस्थानके कममें चढ़ कर मोक्ष पहुंचे हुए और वाचनापाठः लोकके अप्रभागको प्राप्त कि ऐसे मब सिहोंको मेरा निरक्षर नमस्कार हो ॥१॥ जो देवोंके भी देव है. जिनको हाथ जोड़कर देवता Mअर्थसमेतः नमस्कार करते हैं और देषों के देषों (इन्द्रों) से भी पूजित है (मेसे) उस महावीर स्वामीको मैं मस्तकसे वन्दन करता हूँ॥२॥ जिनवरों में वृषभके समान ऐसे श्रीवर्धमान सामीको एक भी नमस्कार किया जाय तो उस नमस्कारको करनेवाला पुरुष हो या स्त्री, उन सबको संसारसमुद्रसे तैरा देता है।३ ।। [अरिष्टनेमिकी स्तुति-] गिरनार पर्वतके शिखर ऊपर जिनकी दीक्षा, केवल ज्ञान और मोक्ष कल्याणकर BIहुया है उस धर्मचक्रवर्ती श्रीअरिष्टनेमि भगवानको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ४॥ चार, आठ, दस और दो, ऐसे चोवीस जिनवर जो इन्द्रा-131 विसे पन्दित है, फिर परमार्थसे जो कृतकृत्य होगये हैं, जो सिद्ध हुए हैं वे मुझे मोक्ष देथें ।। ५ ।। भी जैनशासनकी वैयावच करनेवाले, शान्तिके करनेवाले, और सम्यग्दृष्टि जीवोंको समाधिके करनेषाले है उनकी आराधनाके लिये मैं कास्सग करता हूँ। टिप्प०- बाचमाके दिन श्रीवर्ग अपने बालों में तेल लगा सकती है, पुरुषवर्ग उपचान तप पूर्ण हो तबतक औरकर्म (माल बनवाना ) नहीं करा सकता। प्रकिया तमा चोकिया की वाचनाके दिन श्रीवर्ग शिरमें तेल नहीं लगा सकता, ऐसीभी प्रवृत्ति देखने में माती है। इसके साथ इस बातकी पूर्व सावधानी रखनी चाहिये कि वनों में या बालों में कहि मानि जीवोंकी उत्पत्ति न हो जाय। इत्युपधानधारमा॥ 43
SR No.090452
Book TitleSaptopadhanvidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalsagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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