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________________ ASIA धुत्तेण मणुएणं ॥ १६२ ॥ साविडु साहइ वच्छे ! मा अन्नह तं मणमि चिंतेसु । दिषसरीरो विहिओ मए समता स-14 सत्तीए ॥ १६३ ॥ इत्थागओ य एसो तुमए गउरघपयं परं नेओ । जस्साहं परितुवा तस्स न दुलहमिहं किंपि। ॥ १६४ ॥ ता मह वयणेण इमं मुंजावतु निययभायणे सीसं । दिवाइ रसवईए आजम्माभुत्तपुवाए ॥ १६५ ॥ ता* काजोइणीवि रायं जंपह आगच्छ वच्छ! मुंजेसु । नागरमणी सद्धिं दिवमिम रसवई झत्ति ॥ १६६ ॥ अत्ताणं कय-४ टू किषं मन्नइ जाणंतओऽवि उच्छि8। भुजंतो को अहवा इत्थीहि न वंचिो भुवणे १ ॥ १६७ ॥ काउवि कन्ना अन्न मणुनमन्नं पुणोवि वियरंति । अन्ना जोइणिययणा तम्मज्झे हमिय भुंजंति ॥ १६८ ॥ सोगंधियपरिकलियं तंबोलं, तस्स दावि भणइ । पुत्तय ! उद्विय पिच्छसु रयणमयं नागरमणिहरं ॥ १६९ ॥ ताहिवि वरकन्नाहिं ठाणे ठाणे, हसिज्जमाणो सो । वकाहि उत्तीहिं सुहेण दियह अइक्कमइ ॥ १७० ॥ रयणीसमए जाए विसज्जिए पिक्स-14 णाइववसाए । राया जोडियहत्थो विनवई जोइणिं एवं ॥ १७१ ॥ जइ सामिणि! संतुट्ठा सचं चिय कप्पपल* रिच तुमं । ता एयाणं मज्झा रमिउं मह अच्छरं देसु ॥ १७२ ॥ सा तं साहइ कहमवि जइ संसजति अच्छ राउ नरे । उज्झंति सुरकुमारा ता एवाओ खणरेणं ॥ १७३ ॥ परमहयं नियविजाबलेण तुह पंछियं करिस्सामि। आजम्मं तु तए पुण वयणं एयाण कायचं ॥१७४ ॥ अंगीकयम्मि रण्णा वयणे तो सा भणेइ ससिलेहं । तुज्झाणा। निरयस्स य इमस्स पूरेसु मणइ8 ॥ १७५ ।। एसो चिरजागरिओ भवणोपरि तुम्ह लहउ निहभरं । अन्नं च तुह
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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