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________________ | उल्हवेसु नियंगसंगमा गिरण | तभी बार्य दक्षिण कुमसे वागरे, देवि ! किंपाग फलासायणं व परिणामविरसेसु नरयगइगमणमूलमंतेसु धम्मियजण कुच्छणिजे को सचेयणो विसएसु रमद ?, जओ भणियं - बिसयविसमोहि -- याण, काममहागयपणट्ठसत्ताणं । होइ पडणं नराणं, अवस्स बहुवेयणे नरए ॥ १ ॥ अयि खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगमसुक्खा, । संसारमुक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥ १ ॥ एएस बहुसो सेविएसुवि न कयावि तित्ती होइ, भणियं च न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । हविषा कृष्णयत्मैव, भूय एवाभिवर्द्धते ॥ १ ॥ तम्हा असुइमए सत्तधाउपिच्छिले मह दडुकलेवरे तुह दिवदेहाए रायहंसिय कमाउलनयरनडलसलिले अमिरुई काउं न जुज्जह, अओ मुंचसु विसएस गिद्धिं, कुणसु जिणनाहवयणे बुद्धि, इय तचयणपीऊसपाणगलियविसयपिवासा जक्खणी विन्नवेइ - कुमार ! मह तुह पसायाओ विगयकामाए सुलहा चेय परभवे सुगई, अओ तिहुयणजणपुज्जणिज्जो जिणवरो चेय मह मणे रमउ देवो, सुसादुणो गुरुणो य । इत्थंतरम्मि कुमरो महुरज्जुणिणा सुयं गुणिज्जमाणं सुणिय देविं पुच्छर - केसिमेस सवणपिऊसमाणसरिसो महुर - झुणी ? साथि भणइ - निवनंदण ! इत्थ मुणिणो चाउम्मास खचणधरा परिवसंति सज्झायज्झाणनिरया । अह कुमरो चिंतह - सुदु जायं, जं इत्थवि मे सुसाहसामग्गी, अओ एसा आवयावि मह महसवसमा संचुत्ता, तओ तेसिं पासे । रयणिसेसं समइवाहेमित्ति चिंतिय देविमम्भत्थिऊण कुमरो तेसिं समीयं गओ । देवीवि चिंते- पभायसमए मए
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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