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द्वितीया
तक. चक्रादिशुभरत्नानि = चक्र आदि शुभ रत्नों को, च = और, तद्वत् = उन रत्नों के समान शुभ, नव = नौ, निधयः = निधियां, सम्प्राप्ताः = प्राप्त की, तस्य = उस, राज्ञः = राजा की, षडुत्तरनवत्युक्तसहस्रप्रमिता: - परिमाण में छियानवें हजार. सौन्दर्यनिर्भराः = अतिशय सौन्दर्य से सम्पन्न, शुभाः = शुभ लक्षणों वाली, राज्ञयः = रनिराई, समाख्याताः = कही
गयी हैं। श्लोकार्थ - सगर चक्रवर्ती ने चक्र आदि चौदह शुभ रत्न और उनके ही
समान शुभ नव निधियां प्राप्त की। उसकी अतिशय सौन्दर्यवती और शुभलक्षणों वाली छियानवे हजार रानियां
कही गयी हैं। षष्टिसहस्रोक्ततत्पुत्रा महाबलराक्रमाः । लोलाश्याः गणिताः नित्यं तत्राष्टादशकोटिभिः ||३|| चतुः पराशीतिलक्षगणितैर्मत्तवारणैः ।
सहजाशु शुभे धामगतैरिव धराधरैः ।।३४।। अन्ययार्थ - महाबलपराक्रमाः = महान् बल और पराक्रम के धारी,
षष्टिसहस्रोक्ततत्पुत्राः = साठ हजार उसके पुत्र, (आसन = थे), तत्र = उसके यहाँ, नित्यं = हमेशा. अष्टादशकोटिभिः = अठारह करोड़ की संख्याओं से, गणिताः = गिने गये. लोलाश्चा: = चंचल घोडे, (तथा च = और) धामगतैः = गजशाला में स्थित, चतुःपराशीतिलक्षगणितैः = चौरासी लाख की संख्या से गिने गये, मत्तवारणैः = मदोन्मत्त हाथी, धराधरैः इव = मानों पर्वतों के समान, सहजाशुशुभे = अच्छी तरह
से सुशोभित होते थे। श्लोकार्थ - सगर चक्रवर्ती के महान बल और पराक्रम के धारी साठ हजार
बेटे थे तथा उसके यहाँ हमेशा ही अठारह करोड़ घोड़े और चौरासी लाख मदोन्मत्त हाथी थे जो मानों चक्रवर्ती के धाम में पर्वतों के प्रवेश की शोभा को धारण करते थे अर्थात् सुशोभित होते थे।