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________________ 'तें शांत अन्वयार्थ - नृपागणे = राजा के आँगन में, तं = उन प्रभु को, आरोग्य - विराजमान करके, भक्तितः - भक्ति से, पुनः = बार - बार, सम्पूज्य = पूजकर, तत्र = वहाँ, पुरः = उनके आगे, ताण्डवं = ताण्डव नृत्य को, कृत्वा = करके, (च = और). अखिलमण्डलं = सारे समूह को, प्रसाद्य = प्रसन्न करके, तस्य = उन, त्रिज्ञानधारिणः = तीन ज्ञान के धारी प्रभु का, नामनाथाभिधां = नमिनाथ नाम, कृत्वा = करके, भूभृतः = राजा की, मतेन = अनुमति से. सः - वह, सुरर्षभः - देवताओं में श्रेष्ठ प्रभु. स्वर्ग = स्वर्ग को. जगाम = चला गया। श्लोकार्थ . मिथिला में आकर राजा के आंगन में प्रभु को विराजमान करके तथा बार-बार उनकी पूजा करके वहीं उनके आगे उस इन्द्र ने ताण्डव नृत्य किया और सभी लोगों को प्रसन्न करके तीन ज्ञान के धारी उन शिशु तीर्थङ्कर का नामकरण नमिनाथ करके राजा की अनुमति से वह सुरेन्द्र स्वर्ग चला गया। षड्लक्षाब्देषु यातेषु देवात् श्रीमुनिसुव्रतात् । तन्मध्यजीवी समभून्नमिनाथो जिनेश्वरः ।।३६।। अन्वयार्थ - श्रीमुनिसुव्रतात् = तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ, देवात् = भगवान् से. षट्लक्षाब्देषु = छह लाख वर्ष, यातेषु = बीतने पर, तन्मध्यजीवी = उस काल में ही जिनका जीवन है ऐसे, जिनेश्वर: - तीर्थङ्कर जिनेन्द्र, नमिनाथः = नमिनाथ. समभूत् = हुये। श्लोकार्थ - तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ परमदेव के काल से छह लाख वर्ष बीत जाने पर तीर्थङ्कर जिनेन्द्र नमिनाथ उत्पन्न हुये थे। उनका काल उपरोक्त काल में ही अन्तर्भूत है। सहनदशकाब्दामुरून्नतो यं शरासनैः । पञ्चाधिकदशप्रोक्तैसतत्र जाम्बूनदद्युतिः ।।३७।। सार्धद्विकसहस्राब्दं बालकेलीरतः प्रभुः । सम्यग्व्यतीत्य कौमार्य यौयनाभिगमे तदा ।।३८।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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