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________________ ४६६ __ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य फूलों की टोकरी को रख दिया तब राजा ने प्रसन्न मुख होते हुये उस टोकरी मे से एक पाल लेकर और हाथ में स्थित करके उसे वेग से घुमा दिया। ऐसा करने पर उस फूल से एक मरा हुआ भौंरा उसी सभा की भूमि पर ही गिर पड़ा। तेनैव हेतुना राजा तदैव विरतोऽभवत्। राज्यं सुन्दरपुत्राय दत्त्वागादटवीं प्रभुः ।।६५ । अन्वयार्थ । तेन = उस, एव = ही. कारण = कारण से, राजा = राजा, तदैव = उसी समय, विरतः = भोगों से विरक्त. अभवत् = " हो गया, (च = और), प्रभुः = वह प्रभु, सुन्दरपुत्राय = सुन्दर नामक पुत्र के लिये. राज्यं = राज्य को, दत्वा = देकर, अटवीं -- अरण्य वन को, अगात् = चले गये। श्लोकार्थ . उस ही कारण से उसी समय राजा राजभोगों से विरक्त हो गया और वह प्रभु सुन्दर नामक पुत्र के लिये राज्य देकर वन प्रान्तर को चले गये। मुनिर्भूत्वा तपश्चक्रे घोरसंयमवान् किल | तत्प्रभावेन सन्त्यज्य शरीरं तपसोज्ज्वलम् ।।६६।। स्वर्गे षोडशर्म गत्वा देवोऽभून्निजपुण्यतः । ततश्च्युतो महाद्वीपे जम्बूमति स भारते ६७।। क्षेत्रे सुरम्यदेशे च पोदनाख्यपुरे शुभे । भूपस्य श्रीमतीराज्ञयाः श्रीसेनस्य गुणाम्बुधेः ।।६८।। पुत्रो बभूव सद्बुद्धिः सुप्रभाख्यो महाप्रभुः । पाठी सकलविद्यानां प्रसिद्धो भूमिमण्डले ।।६६ ।। अन्वयार्थ - (तत्र = उस वन में), घोरसंयमवान् = घोर अर्थात् कठिन संयम का पालन करने वाले, मुनिः = मुनि, मूत्वा = होकर, तपः = तपश्चरण, चक्रे = किया, तत्प्रभावेन = उस तप के प्रभाव से, तपसोज्ज्वलं = तप से पवित्र, शरीरं = शरीर को, सन्त्यज्य = छोड़कर. किल = निश्चित ही, षोडशमे = सोलहवें, स्वर्गे = स्वर्ग में, गत्वा = जाकर, निजपुण्यतः =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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