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________________ २४ महदाका श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = समुद्र के समान गहरी-गम्भीर, वापिकाः = वावड़ियाँ, (आसन = थी)। श्लोकार्थ - उस नगर में पक्षियों एवं राहगीरों की प्यास एवं आतप जन्य पीड़ा को समाप्त करने वाले पु और समले समान भीर वावड़ियाँ थीं। तटाका महदाकारगम्भीरजलपूरिताः । प्रफुल्लनानाकमला गुञ्जभ्रमरशब्दिताः ।।६।। जलयारिविहङ्गश्च पुलिने कृतकेलयः । उच्चलैषिशोभादया राजन्ते स्म पुराद् बहिः ।।६३ ।। अन्वयार्थ - महदाकारगम्भीरजलपूरिताः = बड़े-बड़े आकार वाले गहरे तक जल से भरे, गुञ्जभ्रमशब्दिताः = अमरों के गुञ्जन शब्दों से आन्दोलित, प्रफुल्लनानाकमलाः = अनेक विकसित कमलों से पूर्ण, पुलिने = किनारे पर, जलचारिविहङ्गैः = जलचर पक्षियों द्वारा, कृतकेलयः = की गई क्रीड़ाओं सहित, उच्चलैः झषशोभाढ्या = मछलियों के उछलने की शोभा को आलिगित करने वाले, च = और. तटाकाः = तालाब, पुरात = नगर से, बहिः = बाहर, राजन्ते स्म = सुशोभित होते थे। श्लोकार्थ - राजगृह नगर के तालाबों का वर्णन करते हुये कवि कहता है कि नगर से बाहर अनेक तालाब थे जो बड़े-बड़े आकार वाले, गहरे तक जल से भरे हुये, सुविकसित कमल पुषी से परिपूर्ण भौरों की गुञ्जन से गुजित, किनारों पर जलचर पक्षियों द्वारा की गई क्रीड़ाओं से मनोरम और मछलियों के उछलने से विशिष्ट शोभा को प्राप्त होकर सुशोभित होते थे। प्राकारो भूपतेस्तुङ्गस्तत्र भाति स्म चाद्भुतः । शिखरैः स्वैर्य आकाशं स्पृशतीय महोज्ज्वलः ||६४।। अन्वयार्थ - तत्र = वहाँ राजगृह नगर में, स्वैः = अपने, शिखरैः = शिखरों से, आकाशं = आकाश को, स्पृशति इव = स्पृश करते हुये
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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