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________________ ३४४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य से कहकर उनके फल पूछने लगी। स्वप्नों को सुनकर राजा भी हर्ष के कारण साश्रुजल मुख वाला हो गया और रानी से बोला हे सौभाग्यशालिनी बुद्धिमते! निश्चित ही तुम्हारे गर्भ में तीर्थकर आ गये हैं। जिसको जन्म देने से तुम सार्थक पुत्र वाली माता हो जाओगी। उस रानी ने हृदि " = = पाया, (तत् = वह ) है), गर्भागतेन = श्रुत्येति हृदि सा लेभे सुखं यद्वागगोचरम् । गर्भा गतेन सा देवी प्रभुणाभान्नृपालये ॥ २८ ॥ मुक्तिर्मूर्तिमतीवैवं परमानन्दगर्भिता | अथ माघ चतुर्दश्यां शुक्लायां उत्तरादिभे ।। २६ । राज्ञ: प्रसूतिभवने देव्यां देवोऽभ्यजायत । सर्वागमैर्गता कीर्तिस्त्रिज्ञानसहितः प्रभुः ||३०|| अन्वयार्थ - इति = ऐसा श्रुत्वा = सुनकर, सा मन में, यत् = जो, सुखं सुख, लेभे वागगोचरं वाणी से अगोचर (अस्ति गर्भ में आये, प्रभुणा = प्रभु के द्वारा सा वह देवी = रानी, नृपालये = राजा के महल में, मूर्तिमती मुक्ति इव मूर्तिमती मुक्ति के समान, एवं और, परमानंदगर्भिता = परम आनन्द को अपने में सेमे हुयी, अभात् = सुशोभित हुई। अथ = इसके बाद, माघचतुर्दश्यां माघ मास की चतुर्दशी के दिन शुक्लायां = शुक्लपक्ष में, उत्तरादिभे उत्तराषाण नक्षत्र में, राज्ञः = राजा के प्रसूतिभवने प्रसूतिभवन में, देव्यां देवी की कोख में देवः = भगवान्, अभ्यजायत = पैदा हुये, प्रभुः = भगवान्, सर्वागमैः = सारे शास्त्रों से, गताकीर्तिः जानी गयी है कीर्ति जिनकी ऐसे, च = और, त्रिज्ञानसहितः = तीन ज्ञान के धारी (आसीत् = थे) । = = - = = = = - = = श्लोकार्थ - स्वप्नों का फल सुनकर उस रानी ने अपने मन में वाणी से न कहा जा सकने योग्य सुख को प्राप्त किया। गर्भ में आगत प्रभु . के कारण वह रानी राजा के महल में मूर्तिस्वरूप मुक्ति के समान परम आनन्द को अपने में समेटे हुयी सुशोभित हुई ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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