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एकादशः
३२५ और लावण्य से युक्त, सुन्दर नयन दृष्टि और शोभा सम्पन्न
होता हुआ सारे देवों और मनुष्यों के मन को हर लेता था। नीतिशास्त्रोक्तकर्माणि नीतिशास्त्राध्ययनतत्परः ।
नीतिशास्त्रोक्तकर्माणि नीतिविन्नीतिमाचरत् ।।३६।। अन्वयार्थ – नीतिशास्त्रप्रियः = नीतिशास्त्र को अच्छा मानने वाले,
नीतिशास्त्राध्ययनतत्परः = नीतिशास्त्र के अध्ययन में तत्पर, नीतिविद् = नीति के जानकार प्रभु ने, नीतिशास्त्रोक्तकर्माणि = नीतिशास्त्र में कहे गये कर्मों को, (च = और), नीति =
को, आचरत् = आचरण किया। श्लोकार्थ -- कुमार नीतिशास्त्र को अच्छा मानते थे उसके अध्ययन में
तत्पर थे और नीति के दाता हो र नीतिगात्र त माय के अनुसार ही कर्मों को करते थे तथा नीति का पालन करते
थे।
प्रजानुरागी सततं प्रजारक्षणकोविदः ।
प्रजासङ्गीतिकीयांसौ प्रजानाथममोदयत्।।४०।। अन्वयार्थ – प्रजानुरागी = प्रजा से स्नेह रखने वाले, प्रजारक्षणकोविदः
= प्रजा के रक्षण कार्य में दक्ष, असौ = उन कुमार ने, प्रजासङ्गीतिकीर्त्या = प्रजा जनों द्वारा गायी गयी कीर्ति से, प्रजानाथं - राजा अर्थात् अपने पिता को, अमोदयत् = प्रसन्न
किया। श्लोकार्थ -- प्रजा जनों में स्नेह रखने वाले, तथा प्रजा की रक्षा करने में
चतुर उन कुमार ने प्रजाजनों द्वारा गायी गयी अपनी कीर्ति
से अपने पिता प्रजानाथ अर्थात् राजा को प्रसन्न किया। तारूण्यागमने तस्मै विष्णुभूपतिसत्तमः ।
सर्वथा योग्यमालक्ष्य स्वयं राज्यं ददौ मुदा ।।४।। अन्वयार्थ – विष्णुभूपतिसत्तमः = विष्णु नामक श्रेष्ठ राजा ने, तारूण्यागमने
= कुमार की तरुण अवस्था आ जाने पर. सर्वथा = सर्व प्रकार से योग्य, आलक्ष्य = समझकर. स्वयं = खुद ही, मुदा =