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________________ पE२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ – उस राजा ने एक माह तक वन में क्रीड़ा की। एक दिन उसने वन में एक हाथी देखा किन्तु वह मर गया है' - ऐसा जानकर उसी समय जगत् को नश्वर गिनता हुआ वैराग्य को प्राप्त हो गया | उन प्रभु ने मन में बारह अनुप्रक्षाओं को भाकर अर्थात् उनका चिन्वन करके अपने पुत्र को राज्य दे दिया तथा जब ब्रह्मर्षि नामक लौकान्तिक देवों द्वारा उनकी स्तुति की गई तब इन्द्र द्वारा लायी गयी आनन्द नामक पालकी में बैठ गये और देव द्वारा की गयी जय ध्वनि को सुनते हुये मनोहर वन में चले गये। कार्तिक कृष्णपक्षे च त्रयोदश्यां तिथौ प्रभुः । चित्रायां भूमिपालैश्च सहसैः सह तद्वने ।।४।। दीक्षां जग्राह सन्ध्यायां सम्यक् षष्ठोपवासभृत् । तत्क्षणाच्च त्रिबोधोऽपि चतुर्थज्ञानमाप सः ।।५५।। अन्वयार्थ – कार्तिके = कार्तिक मास में कृष्णपक्षे = कृष्णपक्ष में, त्रयोदश्यां = तेरहवीं, तिथौ = तिथि में, च = और, चित्रायां = चित्रा नक्षत्र में, सहखैः हजारों, भूमिपालैः = राजाओं के, सह -- साथ, प्रभुः = राजा ने, दीक्षां - दीक्षा को, जग्राह = ग्रहण कर लिया. च = और, सन्ध्यायां = शाम को, त्रिबोधो = तीन ज्ञान के धारी. च - और, षष्ठोपवासभृत् = षष्ठोपवास के नियम को धारण करने वाले, सः = उन मुनिराज ने. तत्क्षणात् - जल्दी ही, सम्यक = शुद्ध, चतुर्थज्ञानम् =: चौथा मनःपर्ययज्ञान को, अपि = भी. आप = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ - कार्तिककृष्णा त्रयोदशी को चित्रा नक्षत्र में हजारों राजाओं के साथ राजा ने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली तथा तीन ज्ञान के धारी व षष्ठोपवास के नियम को धारण किये हुये उन मुनिराज ने जल्दी ही शुद्ध चौथा मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त कर लिया। द्वितीयेऽहिन गतो देयो वर्धमानं पुरं प्रति । भिक्षायै सोमदत्ताख्यस्तत्र राजा सुधार्मिकः ।।५६।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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