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________________ १८० श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ – समतिनाथ तीर्थकर से नौ करोड सागर काल बीत जाने पर उसमें ही जिनका जीयन अन्तर्भूत है ऐसे आश्चर्योत्पादक कान्तिमान् शरीर वाले भगवान पद्मप्रभु हुये थे। स त्रिंशल्लक्षपूर्वायुः समेतो भास्करप्रभः । सार्ध द्विशतकोदण्डः समुत्सेधः शरीरवान् ।।४७।। सार्ध सप्तोक्तलक्षोक्तपूर्वायुस्तु गतं यदा। कुमारकाले क्रीडाभिस्तदा राजा बभूव सः ।।४८।। अन्वयार्थ - सः = वह, त्रिंशल्लक्षपूर्वायुःसमेतः = तीस लाख पूर्व आयु से युक्त, भास्करप्रभः = सूर्य की प्रभा के समान, सार्धं = आधे सहित, द्विशतकोदण्डः = दो सौ धनुष, समुत्सेधः = ऊँचाई, शरीरवान् = शरीर वाला (आसीत् = था), कुमारकाले = कुमार अवस्था में साध = आधे सहित, सप्तक्तिलक्षोक्तपूर्वायुः = सात लाख पूर्व आयु. यदा = जब, क्रीडाभिः = क्रीडाओं से. गतं = की गयी, दु :: तो..दः -: राना, स: ::: TE, साजा = राजा, बभूव = हुये। श्लोकार्थ - वह पद्मप्रभु तीस लाख पूर्व आयु से युक्त थे उनका शरीर सूर्य की प्रभा के समान था जिसकी ऊँचाई दो सौ पचास धनुष थी। कुमारपने में जब उनकी आयु साढे सात लाख पूर्व खेल खेलने से बीत गयी थी तो तब वह राजा हो गये थे। अर्थात साढ़े सात लाख पूर्व की उम्र में चे राजा बना दिये गये थे। विकारान् जितवान् सर्वान् धर्मकार्यविशारदः । सर्वेभ्यः सुखदः स सर्वदोषहर्ता प्रतापवान् 11४६।। सानन्दं राज्यमकरोत् राज्यभोगैरनेकधा । वनक्रीडार्थमेकस्मिन् समये गतवान्प्रभुः ।।५।। अन्वयार्भ - सर्वेभ्यः- सबके लिये, सुखदः = सुख देने वाले, सर्वदोषहर्ता = सब प्रकार के दोषों को हरने वाले, धर्मकार्यविशारदः = धर्म कार्यों को करने में चतुर, प्रतापवान् = प्रतापी-पराक्रमी, सर्वान् = सारे, विकारान् = विकारों को. जितवान् - जीतने वाले, स = उस राजा ने. अनेकधा = अनेक प्रकार से,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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